पथ के साथी

Sunday, January 27, 2019

870


क्षणिकाएँ
प्रियंका गुप्ता
1
तुमने
शब्द कहे थे;
मैंने
अर्थ जी लिया ।
2
सूरज
कतरा -कतरा पिघलके
बह गया,
धरती बूँद बूँद
पीती गई;
ऐसे ही तो
सृष्टि बनी ।
3
मुझे
गीत बना गा लेना,
या
नज़्म की तरह
लिख लेना;
मैं हवा की तरह
तुम्हारे आसपास रहूँगा,
बिखर जाऊँगा
खुश्बू की तरह;
इश्क़ करने से ज़्यादा
बेहतर होगा
इश्क़ में घुल जाना ।
4
उसने धरती पर
फसल लिखी,
पौधों में
ज़िन्दगी पढ़ी,
और एक दिन
आसमान ताकते हुए
उसने मौत चुनी;
इस तरह
कहानी मुक़म्मल हुई ।
5
ज़िन्दगी मुझे
विष देती रहे
तुम छू के मुझे
अमृत कर देना;
खेल ऐसे ही तो जीतते हैं न ?
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