पथ के साथी

Monday, January 21, 2019

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रामेश्वर काम्बोजहिमांशु

ज़हर मत जाति का बाँटो
ये हवा विषैली होगी ।
नफ़रत के  दमघोंट धुएँ से
धरती मैली होगी।
          आग लगाने वाले हाथों
          निर्माण नहीं होता ।
          मुस्कान छीनने  से जग में
          कल्याण नहीं होता ।
इतिहासों के उजले पन्ने
कर बैठौगे काले ।
लड़वाकरके मौज करेंगे
आग लगाने वाले ।
          मज़हब के चंगुल से निकले,
          उन्हें जाति बाँट रही ।
          प्यार मिटाकर नफ़रत की ही
          अब फ़सलें काट रही ।
चेहरों पर डर लिख देने से
कुछ नहीं पाओगे ।
अपने हाथ काटकर कैसे
क़िस्मत लिख पाओगे .
          रहो प्रेम से सब मिल-जुलके,
          यह डोर नहीं तोड़ो
          अनजाने जो धागे टूटे
          उनको फिर जोड़ो ।
-0-(7 मार्च, 2016)