पथ के साथी

Monday, May 27, 2019

905-लिखना चाहती हूँ


प्रियंका गुप्ता

मैं
लिखना चाहती हूँ
चन्द पंक्तियाँ
उन स्त्रियों के बारे में
जो खोई हुई हैं-
गुँथे हुए आटे में,
हल्दी मसाले से गंधाते हुए
कपड़ों में,
बन्द संदूकची के तालों में,
मकड़ी के जालों में...
स्त्रियाँ-
जो कभी कभी
ढूँढ लेती हैं 
अपने बच्चों के बस्ते में
छुपे- दबे अपने बचपन को-
जो तभी
कुकर से आती
 सीटी की आवाज़ से चौंककर
फिर लुका जाता है
सिंक के जूठे बर्तनों में...
मैं लिखना चाहती हूँ
कुछ पंक्तियाँ
खो हुए वजूद वाली 
औरतों के लिए
पर सच तो ये है
कि
वजूद मिल भी जाए तो क्या?
उन्हें ओढ़ने के लिए
औरतें कहाँ मिलेंगी...

14 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर बहुत मार्मिक कविता लिखी है अपने प्रियंका मैम।💐

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  2. बहुत ही उत्कृष्ट रचना के लिए ह्रृदय से बधाई प्रियंका गुप्ता जी

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  3. बहुत उम्दा रचना...हार्दिक बधाई प्रियंका जी।

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  4. संवेदनाओं से पूर्ण सुंदर रचना। बधाई प्रियंका जी।
    सादर
    भावना

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  5. सबसे पहले आदरणीय काम्बोज जी का आभार जिन्होंने मेरी इस रचना को यहाँ स्थान दिया...|
    आप सभी का दिल से शुक्रिया इतनी प्यारी प्यारी टिप्पणियों द्वारा मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए...|

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  6. वाह वज़ूद भी तलाशना ही होगा

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  7. बेहतरीन रचना ,प्रियंका जी

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  8. दुखती रग पर कलम रख दी आपने.
    वास्तव में सहज कविता. सरल अभिव्यक्ति.

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  9. वाह्ह्ह्ह बेहद भावपूर्ण सराहनीय रचनाएँ।

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  10. वाह ! बहुत ही खूबसूरत रचना ! सच है उन औरतों ने खुद ही अपने वजूद को नकार दिया है! सार्थक सृजन !

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  11. संवेदनशील पंक्तियां

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  12. बहुत बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रियंका जी !

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