पथ के साथी

Friday, May 24, 2019

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रामेश्वर  काम्बोज  'हिमांशु'
मुक्तक 

1
स्वर्ग नरक की बात करो मत,ये इस धरती पर होते हैं।
जहाँ खुशी हो स्वर्ग वहीं है,सदैव नरक जहाँ रोते हैं।
अपने वश में ये कब आए,थी डोर दूसरे हाथों में
खुशियों की राहों  में  आकर,अपने ही काँटे बोते  हैं।
2
पत्थर से टकराओगे तो अपना ही सिर फोड़ोगे।
नए घाव अपनी क़िस्मत में तुम फिर खुद ही जोड़ोगे।
हर सच को भी झूठ समझना शामिल उनकी फितरत में
लोहा होता मुड़  ही जाता पत्थर कैसे मोड़ोगे।
जो कहते हैं लोकतन्त्र  में खून बहाएँगे
समझो ये जनता से भी अब जूते खाएँगे।
लोकतंत्र में चोर व डाकू   जो मिल एक हुए
इनको डर कि हार गए तो जेल में जाएँगे।
-0-
त्रिपदी
समय बड़ा मुँहजोर  अश्व रे मन !  वल्गाएँ कमज़ोर बहुत
जितना इनको हम हैं हेरते ,उतने बेलगाम हुए हैं
जितनी कोशिश की  थी हमने उतने ही नाकाम हुए हैं।

18 comments:

  1. बहुत सुंदर, सार्थक।

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  2. बगुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  3. सुन्दर प्रासंगिक रचनाएँ ।बधाई आदरणीय ।

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  4. बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति! हार्दिक बधाई आदरणीय भैया जी!!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  5. समसामयिक रचना लिखना हम सब रचनाधर्मियों का कर्तव्य है । हम सब को इन रचनाओं से प्रेरणा मिली । आभार और शुभकामनाएँ ।

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  6. अत्यंत गहन भावभूमि की त्रिपदी,एवम सामयिक सन्दर्भों के सुंदर सहज मुक्तकों हेतु बधाई आदरणीय काम्बोज जी।

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  7. बहुत ही भावपूर्ण एवं सामयिक रचना ।👌👌

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  8. भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचनाएँ आदरणीय रामेश्वर सर

    आपको इस सृजन के लिए हार्दिक बधाई

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  9. प्रासंगिक तथा भावपूर्ण रचनाएँ...बधाई आदरणीय भैया जी !!

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  10. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...हार्दिक बधाई भाईसाहब।

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  11. आप सभी की प्रेरक भावानुभूति के लिए अनुगृहीत हूँ।

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  12. बहुत बढ़िया

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  13. सटीक और यथार्थ को दर्शाती रचना । धारदार लेखन के लिए बधाई ।

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  14. समसामयिक भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    सादर
    भावना सक्सैना

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  15. भावपूर्ण अभिव्यक्ति, शुभकामनाएँ!

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  16. यथार्थ की अभिव्यक्ति

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  17. बहुत सामायिक और यथार्थपरक...हार्दिक बधाई...|

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