पथ के साथी

Thursday, April 11, 2019

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डॉ. पूर्वा शर्मा
1.      
जबसे तुझसे हूँ मिली
मैं खुद से ना मिली ।
2.      
महकती  हैं खुशियाँ
ज़िन्दगी के हर कोने में
बस महसूस कीजिए ।
3.      
हौले-हौले दरारों से
 रिस रही थी खुशियाँ
 सहसा ज़िंदगी का दर खोल
 यूँ बिन कुछ बोल
 ये ज़िद्दी चिपकू दुःख
 आ ही धमके ।   
4.      
तुम्हारे इंतज़ार में
बेइंतहा बेकरारी
सुकूँ भी साथ में
कि अब मुलाकात
तय है हमारी  
5.      
साल दर साल, बीतते गए
पर वो लम्हा नहीं बीता
जो तेरे साथ था बीता
           तू मेरे ख़्वाबों में जीता 
6.      
तू दफन है मेरे सीने में कुछ इस तरह
कि साँसें चल रही है सिर्फ तेरे ही दम पर ।
7.      
वो अपनी तड़प को लफ़्ज़ों में बयाँ कर चले
हमें ना हर्फ़ मिले, ना आँखों ने साथ दिया ।
8.      
तुम पर कौन-सा रंग डालूँ कान्हा ?
मैं तो खुद ही रँगी हूँ तुम्हारे रंग में ।  
9.      
रात भर नींद नदारद
कभी मिलने की बेसब्री में
कभी मिलन के सुकूँ में ।
10.  
दिल से महफूज़ कोई जगह नहीं,
देख लो ... तुम आज तक महफूज़ हो यहाँ ।
11.  
तू साथ है तभी तो चल रही है ये ज़िंदगी
ये बात और है कि तू सिर्फ ख्यालों में साथ है ।
12.  
थमता  नहीं
किसी के चले जाने से
ये गतिमान जीवन,  
बस कटने लगता है  
बेरंग, बेजान, बेमतलब,
फीका एवं निराधार-सा ।


1 comment:

  1. दिल से महफूज़ कोई जगह नहीं ..... बहुत प्यारी बात कही है डॉ पूर्वा जी हार्दिक बधाई स्वीकारें |दिल को छूने वाली रचना है |

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