पथ के साथी

Wednesday, April 3, 2019

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2- दो  कुण्डलियाँ, 
रमेशराज
1
बोतल के सँग बाँटते, फिरें करारे नोट
नेताजी को चाहिए, मतदाता का वोट।
मतदाता का वोट, सभी से मीठा बोलें
तज अपराधी-रूप, सभा में अमृत घोलें
सबसे जोड़ें हाथ, कहें चुपके से पल-पल
हमें दीजिये वोट, लीजि गड्डी-बोतल।
2
दीखे है हर ओर अब, अजब तमाशा हाय
हाथी लेकर साइकिल, सरपट दौड़ लगाय।
सरपट दौड़ लगाय, कमल की कला निराली
पीट रहे हैं भक्त, सभा में जमकर ताली।
चतुराई के पेंच, हाथ ने भी कुछ सीखे
राजनीति की भाँ, पिए मतदाता दीखे।
-0-


5 comments:

  1. वाह !
    हार्दिक बधाइयाँ

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  2. वाह रमेश जी बढ़िया लिखा है हार्दिक बधाई |

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  3. बहुत सामायिक और बढ़िया...हार्दिक बधाई

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  4. एकदम सटीक । बहुत बढिया।बधाई रमेश जी

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  5. राजनीति का सच! बहुत बढ़िया!
    हार्दिक बधाई रमेश जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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