पथ के साथी

Thursday, August 23, 2018

837-चाँद फिर-फिर आएगा


चाँद फिर-फिर आएगा
-प्रियंका गुप्ता
सूरज से पूछ रस्ता, चाँद अपने घर गया
लोग ये समझे बिचारा, रोशनी से डर गया

कर वादा रौशनी का, जब रात को आया नहीं
इल्ज़ाम अँधेरे का लो, बादलों के सर गया

डगमगा जाते हैं पाँव, घुप्प अँधेरे में अगर
लोग सबसे पूछते हैं, रहनुमा किधर गया

गाँव की मिट्टी अब बच्चों को भाती ही  नहीं
पढ़-लिखके हर सितारा, चाँद बनने शहर गया

क़हर बनके बिजलियाँ, हिला डालें आसमाँ
चाँद फिर-फिर आएगा, न कहना कि वो मर गया ।
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