पथ के साथी

Sunday, February 18, 2018

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शशि पुरवार
रात
1
 चाँदी की थाली सजी,  तारों की सौगात
 अंबर से मिलने लगी, प्रीत सहेली रात। 
2
रात सुरमई मनचलीतारों लिखी किताब 
चंदा को तकते रहे, नैना भये गुलाब।
3
आँचल में गोटे जड़े, तारों की बारात
अंबर से चाँदी झरी, रात बनी परिजात। 
4
रात शबनमी झर रही, शीतल चली बयार 
चंदा उतरा झील में, मन कोमल कचनार। 
 
कल्पवृक्ष वन वाटिका, महका हरसिंगार 
वन में बिखरी चाँदनीरात करें श्रृंगार।
6
नैनों के दालान में, यादों हैं जजमान
गुलमोहर दिल में खिले, अधरों पर मुस्कान
7
रात चाँदनी मदभरी, तारें हैं जजमान
नैनों की चौपाल में, यादें हैं महमान।
8
आँखों में निंदिया नहीं, सपने कुछ वाचाल
यादें चादर बुन रहीं, खोल जिया का हाल 
9
एक अजनबी से लगे,  अंतर्मन जज्बात 
यादों की झप्पी मिली, मन, झरते परिजात 
10
सर्द हवा में ठिठुरते, भीगे से अहसास 
आँखों में निंदिया नहीं, यादों का मधुमास
11
बैचेनी दिल में हुई , मन भी हुआ उदास
काटे से दिन ना कटा, रात गयी वनवास
12
पल भर में ऐसे उड़े, मेरे होश-हवास
बदहवास- सा दिन खड़ा, बेकल रातें पास
13
संध्या के द्वारे खड़ी, कोमल कमसिन रात 
माथे पर चंदा सजा, चाँदी शोभित गात 
14
अच्छे दिन की आस में, बदल गए हालात
फुटपाथों पर सो रही, बदहवास की रात
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