पथ के साथी

Friday, August 17, 2018

836-ऊँचाई


[जीवन का संदेश देती स्मृति शेष  अटल  बिहारी वाजपेयी की एक  महत्त्वपूर्ण कविता ]

अटल बिहारी वाजपेयी

ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।

जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूँद- बूँद रोती है।

ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।

सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।

जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।

ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।

भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।

धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,

किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।

न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।

मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
-०-

8 comments:

  1. kamal ki kavita hai shabd nahi hain natmastk hun.yanha dene ke liye bahut bahut aabhar.

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  2. वाह! वाह! और बस वाह! लाजवाब कविता! कितनी गहन तथा कितना सुंदर सन्देश देती हुई। आज की पीढ़ी को इस मार्गदर्शन की बहुत आवश्यकता है। मन को बहुत प्रसन्नता एवं संतुष्टि प्राप्त हुई पढ़कर। स्व.अटल बिहारी बाजपेयी जी एवं उनकी लेखनी को शत-शत नमन!ऐसी रचनाओं के रचयिता सदैव के लिए अमर हो जाते हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे!!!

    इस कविता को यहाँ साझा करने हेतु आपका बहुत-बहुत आभार भैया जी!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  3. मर्मस्पर्शी ... शाश्वत सत्य ! विनम्र श्रद्धांजलि अमर कवि को !

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-08-2018) को "उजड़ गया है नीड़" श्रद्धांजलि अटलबिहारी वाजपेई (चर्चा अंक-3067) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेई जी को नमन और श्रद्धांजलि।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. बहुत ही सुन्दर विचार... सुन्दर शब्दों में पिरोया हुआ....
    पूर्वा शर्मा

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  6. हृदय की गहराई से निकली यह कविता और प्रार्थना सच्चे साधक की पहचान है ।ऐसी महान आत्मा को नमन और श्राद्धांजलि ।उन की यह पंक्तिया हर उस इन्सान के लिये मार्ग दर्शक बनेगी जो उँचाइयों पर आँखे गढ़ाये रहते है ।

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  7. हर भाव में गहन अर्थ का अविरल प्रवाह है ये कविता !
    अनगिन नमन है ऐसे अमर कवि और कविता को !!

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  8. कितनी सच्ची बात कही है और अंत में कैसी खूबसूरत प्रार्थना...| नमन उनको...|

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