पथ के साथी

Saturday, August 11, 2018

834


1-शरीफ़ और बदमाश  मर्द
-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

शरीफ़ होते हैं  वे मर्द
जो आपके  बिल्ली और कुत्ते का
हालचाल पूछते हैं
उनके बीमार होने पर
सहानुभूति जताते हैं
उनके मर जाने पर
टेसुए बहाते हैं
और इस तरह निकटता बढ़ाते हैं
आपके जीने -मरने
रोने -धोने से
उनका कोई  नाता नहीं होता।
वे जब आपके घर आते हैं
आपके कुत्ते या बिल्ली को
जीभर चूमते हैं
उस समय उनके मन  में
कुत्ते-बिल्ली नहीं ,
बल्कि एक औरत होती है
होता है उसका एक शरीर
और वे होते हैं
भेड़ की खाल में छिपे
रक्त पिपासु भेड़िए,
शिकार की तलाश में
जीभ लपलपाते हैं;

वे मर्द बदमाश होते हैं -
जो पूछते हैं-
आप अब कैसे हैं?
दवाई ली या नहीं,
आराम भी कर लेना,
मेरे लायक कुछ भी हो
ज़रूर बता देना।
वे किसी मन्दिर नहीं जाते ;
लेकिन मन ही मन
तुम्हारे लिए दुआओं के मन्त्र पढ़ते  हैं
तुम्हारा समाचार न मिलने पर
सो नहीं पाते हैं
तुम्हारी एक आह और कराह को
सात समन्दर पार से भी जान जाते हैं
तुमको छूते हैं ऐसे
जैसे कोई भक्त
मत्था टेककर मन्दिर की सीढ़ियाँ चढ़ता हो,
जैसे कोई तितली छूती है
फूल की कोमल पाँखुरी,
तुम्हारा माथा छूकर या चूमकर
केवल आशीष बरसाते हैं
तुम्हारी  हर संवेदना को
बाहर के काँटों से बचाते हैं
लहूलुहान हो जाते हैं उनके हाथ
दिल हो जाता है तार-तार
लोगों के व्यंग्य-बाणों से
फिर भी मुस्कुराते हैं ।

वे बदमाश मर्द
अपनों के बीच भी
खलनायक नज़र आते हैं
हर पल ज़हर पीते हैं
ज़हर के कारण न जी पाते
और तुम्हारी दुआओं के कारण
मर भी नहीं पाते हैं
खुद भोगते हैं मरणान्तक पीड़ा
तुम्हें शायद नहीं मालूम
कि
तुम्हारे दर्द में सो नहीं पाते हैं,
सचमुच ऐसे मर्द बदमाश होते हैं।
-0-(8 जुलाई-18)
-०-
2-बस तुम आ जाना
सत्या शर्मा ' कीर्ति '

जब बसंत का मौसम बीता जाए
मन पर मेरे पतझड़ सा छाए
उस तपते - थकते मौसम में भी
रिमझिम बूँदों के जैसे ही तुम
बन बदरा मुझे भिगो जाना ।।
 
जब डालों पर न कलियाँ  चटके
न बागों में कोई चिड़िया चहके
जब सूखी हो माला की लड़ियाँ
तब बन पराग मेरी मन बगिया में
मुझको तुम सुरभित कर जाना ।।

जब जीवन नदिया हो सूख  रही
जब मन की लहरें हों  रूठ रही 
तब प्यास से आतुर  तन -मन में
अमृत कलश -सा बन कर तुम
बूँद -बूँद बन छलका जाना ।।

हृदय -कोंपल के खिल जाने पर
दिलों की धड़कन मिल जाने पर
विश्वास रोप अधरों पर  मेरे
बेशक फिर तुम चले ही  जाना।।
हाँ , एक बार तो फिर आ जाना ।
-०-

18 comments:

  1. Kamboj ji bahut bhavpurn savednaon ko jhkajhor kar rakh deni vali rachna hai bahut sahi kaha aapne aapke lekhn ko prnam,satya ji aapki rachna bhi bahut achchhi lagi aapko bhi bahut bahut badhai...

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सामयिक और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती कविता भैया जी । मन को झझकोरती हुई ।
    साथ ही मेरी भी कविता को स्थान देने के लिए सादर आभार ।


    हार्दिक धन्यवाद भावना जी

    ReplyDelete
  3. वाह ! भैया कमाल की रचना !!

    तुमको छूते हैं ऐसे
    जैसे कोई भक्त
    मत्था टेककर मन्दिर की सीढ़ियाँ चढ़ता हो,
    जैसे कोई तितली छूती है
    फूल की कोमल पाँखुरी,
    तुम्हारा माथा छूकर या चूमकर
    केवल आशीष बरसाते हैं ...

    अद्भुत ...!!

    बहुत बधाई भैया इस रचना के लिए ...(हरकीरत हीर

    ReplyDelete
  4. झकझोर देने वाली कविता सर... वाकई हमारे समाज के मापदंड बहुत अजीब हैं... हर बात पर.. हर धर्म में... हर मज़हब में.. हर पाठशाला में... प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं पर प्रेम के असली अर्थ भी नहीं जानते।

    व्यंग्य है यह कविता... आक्रोश और व्यथा भी

    ReplyDelete
  5. कईं बार पढ़ी काम्बोज जी की कविता
    कितना सही विश्लेषण किया है उन्होंने शरीफ़ और बदमाश मर्दों का । अंतस में शोर मचाती बेहद शानदार रचना ।
    सत्या जी को बेहद सुंदर और मार्मिक कविता के लिए बधाई

    ReplyDelete
  6. समाज के बदलते रंग बदलती सोच को बहुत सुन्दर ढ़ंग से प्रस्तुत है काम्बोज जी । मर्म को छूने वाली , समाज को सोचने पर विवश करने की शक्ति रखने वाली रचना है यह ।यही हो रहा है आजकल ।लोग बहुत मॉडर्न होने लगे हैं ।

    ReplyDelete
  7. बस तुम आ जाना सत्या शर्मा जी की रचना भी मन के भावों को प्रस्तुत करती बहुत सुन्दर रचना है ।

    ReplyDelete
  8. 'शरीफ और बदमाश मर्द' पीड़ा भरे शब्दों से कटु सत्य को अनावृत करती अद्भुत रचना !

    'बस तुम आ जाना' राग-अनुराग भरी सुन्दर मनुहार !

    दोनों रचनाकारों को सुन्दर सृजन की हार्दिक बधाई !

    ReplyDelete
  9. ’शरीफ और बदमाश मर्द’ अंतस को झकझोरने वाली मार्मिक कविता।

    सत्या जी बेहद सुंदर भावपूर्ण कविता।

    आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  10. ह्रदय से सबका बहुत -बहुत आभार

    ReplyDelete
  11. अत्यंत उत्तेजक एवं आक्रामक कटाक्ष करता सृजन समाज की वास्तविकताको अधनंगा कर रहा है।नमन आदरणीय सर

    ReplyDelete
  12. मन की आकुलता को तृप्त करता मनभावन सृजन सत्या जी।

    ReplyDelete
  13. हृदय से निःसृत रचनाओं हेतु बधाई।

    ReplyDelete
  14. हार्दिक आभार डॉ.पूर्णिमा राय और डॉ.कविता भट्ट जी

    ReplyDelete
  15. दोनों रचनाएँ बहुत ही सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएँ |
    पूर्वा शर्मा

    ReplyDelete
  16. ह्रदयतल तक झझकोरने वाली रचना पढ़ कर वास्तविकता और समाज में फैले कटु सत्य के प्रति भर्त्सना और विषाद की भावना पैदा हुई | एक नहीं दो बार पढ़ी भैया आपकी कविता ताकि मर्म की तह तक पहुँच सकूँ | ऐसा लेखन तो सचमुच एक चेतना जगाने वाला लेखन है | बधाई एवं शुभकामनाएँ आदरणीय काम्बोज भाई |

    सत्य जी की प्रेम के विभिन्न रूप दर्शाती रचना मनमोहक लगी | आप दोनों को बधाई |

    ReplyDelete
  17. हिमांशु भाई की कटुसत्य को दर्शाती भावपूर्ण अभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई । सत्या जी की प्रेम को दर्शाते सुन्दर उद्गार । बधाई लें ।

    ReplyDelete
  18. सत्या जी को एक अच्छी रचना के लिए बधाई...|
    आदरणीय काम्बोज जी...बस निःशब्द हूँ...|

    ReplyDelete