पथ के साथी

Saturday, October 28, 2017

772

मुक्तक
1-सुनीता काम्बोज 
वो क्या अपने जो देते हैं,चोट हमेशा
ले लेते हैं रिश्तों की वो,ओट हमेशा
सभी खूबियाँ जग वो, गिनवाते हैं
उनको मेरे अंदर दिखते खोट हमेशा
2
कभी  हो प्यार की बातें , कभी तकरार की बातें
कभी हो जीत की बातें, कभी हो हार की बातें
गुजर जाएगी बातों में हमारी जिंदगी सारी
कभी इस पार की बातें, कभी उस पार की बाते
3
जब मन का ये खालीपन भर जाएगा
लौट परिंदा अपने ही घर जाएगा
भारी पत्थर डूब गए गहराई में
लेकिन तिनका लहरों पर तर जाएगा
4
तेरी आँखों में वो चाहत समर्पण ढूँढती हूँ मैं
समन्दर से मिले गंगा वो अर्पण ढूँढती हूँ मैं
मेरी हद से बढ़ी दीवानगी का ही सबब है ये
तेरी सूरत बसी जिसमें वो दर्पण ढूँढती हूँ मैं
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नई कलम

सरहद पर एक जवान
इरशाद

जी रहे हैं इस पल को
    कोई तो अपना सहारा होगा
हमारे होंठों की खुशी की खातिर
    सरहद पर मर रहा होगा ।

छोड़ कर आया माँ की रोटी
    वो भी कहीं रोया होगा
अपने एक वतन की ख़ातिर
    सब अपना खोया होगा ।

याद करो एक बार उसको
    किसी का वो भी लाल होगा
आंसू तो बहाआे तुम अपना
नही तो उसका अपमान होगा ।

बहन भी करती होगी दुआ
    भाई भी तो रोया होगा
बाप टूट कर हार गया
    क्या यह देश रोया होगा ।

वो भी कफन में रोता होगा
    देख देश कहानी को
देश तो आज़ाद हो गया
    पर गुलाम है आज भी जवानी तो ।             
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2- सहती बेटी-           

       -इरशाद

जब वो छोटी गुड़िया थी 
    न किसी की प्रिया थी 
सब घूरा करते थे उसको ;
    क्योंकि वो एक बेटी थी ।

फिर भी उसे कलंक कहा गया
    बिना कहे सब सहती थी
कुछ न दिया समाज ने उसको
    क्योंकि वो एक बेटी थी ।

बेटा तो सब छोड़ गया
   माँ उसे समझाती थी
जब रहा न कोई भी अपना 
   वही लाठी बन जाती थी ।

पढ़ने से उसे रोका जाता
    गृहिणी कहलाती थी
सारी खुशियां छीन ली उसकी
    क्योंकि वो एक बेटी थी ।

विधवा जब वो हो गई
    कलंक वाहिनी कहलाती थी  
धिक्कारा करता समाज ये उसको
    क्योंकि वो एक बेटी थी ।

करूँ प्रार्थना समाज से
    नहीं पूजना कोई देवी
छोड़ भी दो ये भेदभाव
    मान लो बस उसको बेटी
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सम्पर्कसुपुत्र मो० इकबाल,  979/7 अशोक विहार  कॉलोनी बेरी वाली मस्ज़िद,                               पानीपत, (132103)-   Irshad Malik <irshadmalik1135@gmail.com>

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