पथ के साथी

Monday, August 14, 2017

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डॉ.कविता भट्ट

(हे न ब गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड)

जब सुलह के निष्फल हो जाया करते हैं, सभी प्रयास
शान्ति हेतु मात्र युद्ध उपाय, इसका साक्षी है इतिहास
एक सुई की नोंक भूमि नहीं दूँगा दुर्योधन हुंकारा था
हो निराश शांतिदूत कृष्ण ने कुंती का नाम पुकारा था  

वीर प्रसूता जननी- तेज़स्विनी नारी का उपदेश था
“धर्मराज! तुम युद्ध करो” ये महतारी का सन्देश था 
तुम निर्भय बन अत्याचारी की जड़ उखाड़ कर फेंको
कर्त्तव्य और धर्म पथ पर तुम आत्मत्याग कर देखो 

साहस भरे इन वचनों से कृष्ण प्रभावित हुए अपार
आगे चलकर ये गीता- कर्मयोग के बने थे आधार
मात्र पाँच गाँव की बात थी महाभारत के मूल में 
कश्मीर लगा सम्मान दाँव पर, सैनिक प्रतिदिन शूल में

कितने सैनिक लिपटे, लिपट रहे और लिपटेंगे अभी
तिरंगा पूछ रहा- अधिनायक! सोचो मिलकर जरा सभी
रात का रोना बहुत हो चुका अब सुप्रभात होनी चाहिए
बलिदानों पर लाल किले से निर्णायक बात होनी चाहिए

अंतिम स्टिंग, एक बार में ही सब आर-पार हो जा बस
कोबरे-किंग-साँप-सँपेरे-बाहर-भीतर,प्रलयंकार हो जा बस
तुम निर्भय हो, उठो कृष्ण बन लाखों अर्जुन बना डालो
चिर-शांति स्थापना के लिए अब सीमा को रण बना डालो  
 


20 comments:

  1. V nice poem sunder tarike SE likha hai
    Badhai
    Rachana

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  2. अंतिम स्टिंग, एक बार में ही सब आर-पार हो जाए बस
    कोबरे-किंग-साँप-सँपेरे-बाहर-भीतर,प्रलयंकार हो जाए बस
    सही कहा कविता जी ..शानदार सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।..जय हिन्द

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  3. आर पार अब हो ही जाना चाहिए. बहुत भावपूर्ण रचना. बधाई कविता जी.

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  4. हकीक़त को बयान करती एक सार्थक-ओजपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें...|

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    1. हार्दिक धन्यवाद इस सुन्दर बधाई हेतु

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  5. अत्यंत विचारणीय ! एवं मंथन योग्य विषय ! विचार करना होगा !आभार "एकलव्य"

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  6. ओज की सुंदर कविता के लिए कविता जी को बहुत-बहुत बधाई 💐

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपको

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  7. Bahut bhavpurn rachna bahut bahut badhai.

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    1. हार्दिक आभार डॉ. भावना जी

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  8. तुम निर्भय हो, उठो कृष्ण बन लाखों अर्जुन बना डालो
    चिर-शांति स्थापना के लिए अब सीमा को रण बना डालो ।
    कविता जी की ओजपूर्ण कविता से महाभारत के दृश्य साकार हो उठे । बहुत बधाई अनुजा ।
    सस्नेह विभा रश्मि

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    1. हार्दिक आभार आपके उत्साहवर्धन हेतु आदरणीया विभा जी

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  9. कितने सैनिक लिपटे, लिपट रहे और लिपटेंगे अभी
    तिरंगा पूछ रहा- अधिनायक! सोचो मिलकर जरा सभी
    रात का रोना बहुत हो चुका अब सुप्रभात होनी चाहिए
    बलिदानों पर लाल किले से निर्णायक बात होनी चाहिए
    बहुत भावपूर्ण रचना .....बधाई कविता जी !!!

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    1. ज्योत्स्ना जी हार्दिक आभार

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  10. ओजपूर्ण सुंदर कविता।

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