पथ के साथी

Monday, April 3, 2017

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1-दमखम-कृष्णा वर्मा

हज़ारों आँधियाँ आएँ
करोड़ो हो बर्फबारी
खिलेंगे गुल किसी सूरत
हो चाहे लाख दुश्वारी।

सब्र रखो हिरासत में
जो आनन्द मानना चाहो
किला अपने मनोबल का
किसी सूरत में ना ढाओ।

ना ज़्यादा दिन चलें हैं ज़ुल्म
तुगलक हार जाते हैं
भयानक रात हो कितनी
सवेरे फिर भी आते हैं।

डराते हो हमें कि छोड़ दें
हम सारा जहाँ अपना
हो कितना भूत ताकतवर
निडर नहीं छोड़ते सपना।

मेरे लब पर दुआएँ हैं
है तेरे हाथ में ख़ंजर
जो दम है तेरे ख़ंजर में
तो कर मेरी दुआ बंजर।

मैं देखूँ झूठ तेरा कैसे
सच को कफ़न पहनाए
मेरे जज़्बे मेरे साहस को
कैसे घाट पहुँचाए।

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12 comments:

  1. विरोधरस की सत्योंमुखी सम्वेदना से युक्त सार्थक कविता

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    1. धन्यवाद आदरणीय।

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  2. आ० भाई काम्बोज जी हार्दिक आभार।

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  3. सुंदर भावों भरी सशक्त रचना
    हार्दिक बधाई दीदी

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  4. 'हो कितना भूत ताकतवर \निडर नहीं छोड़ते सपना'आत्मबल का तुमुलनाद करती,उज्ज्वलतम भविष्य का स्वप्न देखती सुंदर कविता हेतु कृष्णा जी बधाई|
    पुष्पा मेहरा

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  5. बहुत प्रेरणादायक और ओजपूर्ण रचना...बहुत बधाई...

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  6. बहुत सुंदर रचना ..हार्दिक बधाई कृष्णा जी

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  7. सुंदर भावों से सजी रचना..कहीं कहीं लय अटकाव है ...
    बधाई

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  8. बहुत सुंदर ..ओजपूर्ण रचना...हार्दिक बधाई कृष्णा जी!!!

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  9. कृष्णा जी सुन्दर ओजपूर्ण कविता के लिये बधाई । बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं ये निराशा में आशा जगाने वाली -भयानक रात हो कितनी सबेरे फिर भी आते हैं ।

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  10. आप सभी का हृदय से आभार।

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  11. Bahut sundar bhav bahut bahut badhai.

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