पथ के साथी

Thursday, March 2, 2017

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1- जंगल 
मंजूषा मन

जंगल
- सी घनी हैं तुम्हारी यादें
ऊँचे
-ऊँचे पड़े सटकर खड़े है
बीच से गुजरती हवा
सरसराते पत्तों का शोर
सुकून देती शीतलता तुम्हारा स्पर्श...

पाँवों से उलझतीं लताएँ
तुम रोक रहे हो जाने से,
झाड़ियों में उलझता दामन
तुमने पकड़ लीं है बाहें....

पपीहे की तान,
कोयल का गीत,
कानों को छूकर निकलती हवा
सीटियाँ- सी बजाती है
यूँ कि जैसे तुम गा रहे हो गीत
या धीरे से कानों में कह रहे हो
मन की बात...
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Project Officer
Ambuja Cement Foundation,Rawan (chhattisgarh)
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2-तुम ही तो हो !!
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
पर्वत के उच्च  शिखर से उतर
एक नदी स्नेह सी बहने लगी।
हर आँगन में हो हरियाली,वह कहने लगी।
आँखों  में था दिपदिपाता विश्वास
अधरों पर भोर सा मधुरिम हास
सीने में ज्वालामुखी सा दबा भावों का सौरभ
लिपटा  तन के आस पास,
मन की सीमाओं के पार तक।
माथे पर स्नेहसिक्त  उजाला
आलोकित हो उठे
मन के सारे लोक
कौन है वह ?
तुम ही तो हो !!
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13 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति !!

    सरस सृजन के लिए दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!

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  2. मन जी जंगल बहुत सुन्दर रचना ,आ . काम्बोज भाई की कविता तुम ही तो हो , बहुत सुन्दर मनभावन रचना । बधाई सृजनधर्मियों को ।
    सनेह विभा रश्मि

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  3. मंजूषा जी बहुत सुन्दर रचना। बधाई ।
    कम्बोज जी भाई साहब,तुम ही तो हो ,बहुत सुन्दर रचना ।आपको बधाई ।

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  4. मंजूषा जी ,आदरणीय भैया जी हार्दिक बधाई आप दोनों को |
    दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर सार्थक |

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  5. मंजूषा जी ,आदरणीय भैया जी हार्दिक बधाई आप दोनों को |
    दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर सार्थक |

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  6. बेहद सुंदर रचनाएँ। मंजूषा मन जी, आ० भाईसाहब आप दोनों को हार्दिक बधाई।

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  7. मंजूषा जी, भैया जी... बहुत ही प्यारी कविताएँ हैं दोनों !
    हार्दिक बधाई आप दोनों को !!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  8. बहुत मनोहारी रचनाएँ...|
    इतनी प्यारी रचनाओं के लिए आप दोनों को बहुत बहुत बधाई...|

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  9. आ.रामेश्वर सर ,बहुत खूब।प्राकृतिक सौंदर्य की आगोश में समाया प्रेम अद्भुत एवं अलौकिक है...

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  10. सभी गुणीजन का हृदय से आभार । काम्बोज

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  11. बहुत सुन्दर भावों से सजी कविता है मंजू जी और भाई कम्बोज जी को हार्दिक बधाई |

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  12. मंजूषा जी ,आदरणीय भैया जी ...दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर !!
    !हार्दिक बधाई आप दोनों को !!!

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  13. मन के भाव का अद्भुत रूप दोनों रचना में. मंजूषा जी और काम्बोज भैया को बहुत बधाई.

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