पथ के साथी

Tuesday, October 18, 2016

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1-शृंगार छंद
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

झूमती गाती आई भोर
दिवस लो होने लगा किशोर
थिरकते पुरवाई के पाँव
तृप्त हों तृष्णाओं के गाँव ।।

मिले जब मन से मन का मीत
मौन में मुखरित हो संगीत
अधर पर सजे मधुर मुस्कान
हुई फिर खुशियों से पहचान ।।

जले जब नयनों के दो दीप
लगी फिर मंज़िल बहुत समीप
अँधेरों ने भी मानी हार
किया है स्वप्नों का शृंगार ।।

थामकर हम हाथों में हाथ
चलेंगे जनम-जनम तक साथ
राह में मिलने तो हैं मोड़
कहीं मत जाना मुझको छोड़ ।।
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2-अनिता मण्डा

मैंने चाँद तारे लिखे
आसमान जगमगा उठा
मैंने सूरज लिखा
क़ायनात रोशन हो गई
मैंने फूल लिखा
हवा में ख़ुश्बू बिखर गई
मैंने तुम्हारी खुशियाँ लिखी
हर दिशा उल्लास से भर गई
मैंने खुद को लिखा तो
फिर क्यों मन में वेदना समा गई ?
-0-
3- शिव डोयले

उसने सम्बन्धों को
इस तरह
भुला दिया 
जैसे
यात्रा के दौरान
नदी में सिक्का
डाल दिया 
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