पथ के साथी

Thursday, August 18, 2016

657



गिरीश पंकज
रक्षा का यह बंध है, उज्ज्वल इसकी रीत।
भाई-बहन के नेह का, गूँजे नित संगीत ।

सूत्र नहीं यह रेशमी, भावों का अनुबन्ध।
भाई-बहिन का नेह है, ज्यों मधुरिम मकरंद।

हर बहना रक्षित रहे, राखी का सन्देश ।
हर नारी को नित मिले, भयमुक्त परिवेश।।

निर्मल धागा प्रेम का, है कितना मजबूत।
हर पल लगता बहन को , भैया है इक दूत।

रिश्ते मैले हो रहे, फिर भी है विश्वास।
भाई-बहिन के नेह का, उज्ज्वल है अहसास।
-0-

656



सुनीता काम्बोज

भाई-
सुनीता काम्बोज
1



पिताजी की छवि दिखती वो माँ का रूप लगता है

मेरा भैया -सा भाई तो नसीबों से ही मिलता है



कभी लगता गुरु- सा वो, कभी मेरी सहेली सा

मेरी खुशियाँ रहे क़ायम, दुआ वो रोज़ करता है



ये जिम्मेदारियाँ सारी निभाता वो सदा घर की

है सारी ही उम्मीदों पर ,खरा हरदम उतरता है



तिलक तुझको लगा दूँ मैं ,आ तेरी आरती करके

निग़ाहों में मुझे उसकी सदा ही फ़र्ज़ दिखता है



सुनीता की दुआएँ हैं उसे कोई न दुख आए

मुझे तो चैन मिल जाता ,वो जब फूलों-सा हँसता है



2


ड़ा निश्छल ,बड़ा पावन ,बहन और भाई का बंधन

तुझे ही देखके लगता कि जैसे आ गया बचपन



कलाई पर तुम्हारी मैं ये अपना प्यार बाँधूँगी

तू चमके चाँद -सूरज -सा यही वरदान माँगूँगी

जिए जुग-जुग मेरा भैया ,मिले जग की सभी खुशियाँ

तेरे ग़म भी मुझे दे दे मैं रब से ये ही बोलूँगी



नजर तुझको न लग जाए लगा दूँ आँख का अंजन

तुझे ही देखके लगता कि जैसे आ गया बचपन



मेरी आँखों का सूनापन नही वो देख पाता है

मेरी आँखों में आँसू हो तो खुद ही छटपटाता है



शरारत से अभी भी वो नही यूँ बाज है आया

बड़ा होकर भी खुद को वो सदा छोटा बताता है



बहन तेरी ये कुमकुम- सी ये भाई है मेरा चन्दन

तुझे ही देखके लगता कि जैसे आ गया बचपन



हो मन उसका अगर भारी, पिता माँ से छिपाता है

किसी को भी नहीं कहता ,मुझे आकर बताता है



सुनीता डाँट देती है तो मुँह अपना फुला लेता

अगर मैं रूठ जाती हूँ ,मुझे अक्सर मनाता है



उसी की ही महक से तो मेरा घर भी लगे उपवन

तुझे ही देखके लगता कि जैसे आ गया बचपन

-0-



रक्षा-बन्धन
डॉ०पूर्णिमा राय
रक्षा बन्धन आ गया, बहना का ले प्यार।।
दिवस 'पूर्णिमा' कर सजे,रक्षाबंधन तार।
रक्षाबंधन तार, राखियाँ प्यारी चमके
शाश्वत केवल प्यार, बहन के मुख पे दमके।
राखी का उपहार ,मुझे यह दे दो भिक्षा
महके आँगन प्यार, बहन की हरदम रक्षा।।

*******************************
मनमोहक राखी चमक,फैली चारों ओर।
बहन-प्रेम के सामने,किसका चलता जोर।।
किसका चलता जोर,बदल गई मन भावना,
ये रेशम की डोर,फैलाये सद् भावना।।
देखें गर इतिहास ,मिला कर्मवती को हक
जागे मन विश्वास ,धर्म भाई मनमोहक।।

-0-