पथ के साथी

Tuesday, April 5, 2016

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रामेश्वर काम्बोज हिमांशु'

तुला के एक पलड़े पर रखा मैंने-
अपना सारा छलकता प्यार
ओस की बूँदों-सा निर्मल
स्नेहआत्मीयता में लिपटे सारे रंग
भावों के सारे इन्द्रधनुष
कभी न मिलने की सारी व्याकुलता,
मन-आँगन छूते सारे स्पर्श;
दूसरे पलड़े पर तुम थे,
सिर्फ़ तुम
फिर भी तुम ही भारी थे
तुम्हारा अन्तर्मन इतना स्नेहसिक्त था
कि तुम ही भारी रहे!
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