पथ के साथी

Tuesday, April 5, 2016

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रामेश्वर काम्बोज हिमांशु'

तुला के एक पलड़े पर रखा मैंने-
अपना सारा छलकता प्यार
ओस की बूँदों-सा निर्मल
स्नेहआत्मीयता में लिपटे सारे रंग
भावों के सारे इन्द्रधनुष
कभी न मिलने की सारी व्याकुलता,
मन-आँगन छूते सारे स्पर्श;
दूसरे पलड़े पर तुम थे,
सिर्फ़ तुम
फिर भी तुम ही भारी थे
तुम्हारा अन्तर्मन इतना स्नेहसिक्त था
कि तुम ही भारी रहे!
-0-

24 comments:

  1. प्रेम ...समर्पण की पराकाष्ठा ...अतुलनीय !
    हार्दिक बधाई आपको !!

    सादर नमन के साथ
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  2. नमन कविता और आपकी लेखनी दोनों को !!

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  3. अप्रतिम कविता , सच्चा प्रेम की पराकाष्ठा से ही प्रेम लौकिक से अलोकिक हो जाता है .
    हार्दिक बधाई भाई .

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  4. सच्चे प्रेम में सिक्त कविता है जो प्रेम की गहराई समाये हुए है| हार्दिक बधाई भाई कम्बोज जी|

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  5. वाह!! प्रेम की उत्कृष्टता...बेजोड़!
    हार्दिक बधाई आपको।

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  7. दूसरे पलड़े पर तुम थे,
    सिर्फ़ तुम…।
    फिर भी तुम ही भारी थे
    तुम्हारा अन्तर्मन इतना स्नेहसिक्त था
    कि तुम ही भारी रहे! ... वाह कितनी सुन्दर कविता ... प्रेम की गहराई का अद्भुत एवं अक्षरश: सत्य चित्रण

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  8. वाह! कितने सुंदर भाव! कितना पावन एहसास ! सच्चे प्रेम की सुंदर, सरल, सहज परिभाषा!
    भैया जी, आपको एवं आपकी लेखनी को नमन !!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  9. निश्छल -सहज भाव से मन में निरंतर बसते प्रेम की पराकाष्ठा की अप्रतिम मिसाल -'तुम्हारा अंतर्मन इतना स्नेहासिक्त था
    कि तुम ही भारी रहे!' भाई जी आपके भावों की गहराई और गुरुता को नमन |
    पुष्पा मेहरा

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  10. प्रेम की नज़ाकत को इतनी गहराई से समझने वाले को इतना प्रेम करने वाला भी कोई मिल जाए, बहुत सुंदर संयोग है, बधाई!!!

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  11. सीमित शब्दों में ही संबंधों का सारा संसार समेटती हुई, अंतर्मन को छूती हुई अत्यंत प्रभावशाली रचना ।

    बधाई !

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  12. अद्भुत!!!

    तुम्हारा अन्तर्मन इतना स्नेहसिक्त था
    कि तुम ही भारी रहे!

    निश्छल प्रेम की गहराई तक उतरने व पाठक को भी वहाँ तक उतारने वाली रचना ...भैया जी, आपको और आपकी लेखनी को सादर नमन !!!

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  13. बहुत कोमल भाव. अंतर्मन को छूती बेहद प्रभावशाली कविता. बधाई भैया.

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  14. सात्विक सच्चे प्रेम की प्रतीति होने पर यही लगता है प्रेम आथाह है उसकी थाह नही पाई जा सकती ,इसी लिये तो प्रेम ईश्वर का रूप है हमअपना सब कुछ समर्पन करके भी उसके तुल्य नहीं हो सकते ।हाँ उस समर्पित प्रेम का आनंद जरूर ले सकतें हैं ।प्रिय के प्रेम की अनुभूति आनंददायक होती है ।नन्ही सी कविता में रामेश्वर जी कितने गहरेअर्थ भर दिये ।एक प्रकार से अपने प्रिय के दर्शन करा दिये ।हार्दिक बधाई ।

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  15. नैसर्गिक प्रेम को उजागर करती अनुपम रचना बधाई की पात्र सादर नमन आदर्णीय सर जी |

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  16. प्रेम रस से सरोबर पंक्तियाँ ...

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  17. वाह बहुत ही बढ़िया। कोमल, संवेदनशील।

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  18. वाह बहुत ही बढ़िया। कोमल, संवेदनशील।

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  19. इतना स्नेह ! इतना सम्म्मान !कि झोली ही छोटी पड़ जाए ! जीवन में खूब मिला -प्यार सम्मान धोखा ! सब सहेज लिया ।

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  20. कविता भट्ट: आपकी कविता पढ़ी।: जितनी प्रशंसा की जाए कम है। ऐसा लगता है कि मेर मन जिन शब्दो को वर्षों से खोज रहा था,यहाँ आकर वह खोज समाप्त हो गई।वाह आनन्द आ गया पढ़कर

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  21. अत्युत्तम। मन को गहरे तक छूती सुंदर कविता।

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  22. बहुत सुन्दर ।

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  23. javab nahi bhavon ka hardik badhai...

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  24. जब सामने सच्चा और सात्विक प्रेम हो, तो उसके सामने तो दनिया की सारी चीजें, सारे भाव हलके ही पड़ जाएंगे | जिसको किसी का सच्चा. निस्वार्थ और पवित्र प्रेम मिल जाए, उससे ज़्यादा धनी कौन होगा भला |
    सीधे दिल को छूती इस प्यारी सी रचना के लिए बहुत बधाई...|

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