पथ के साथी

Monday, September 7, 2015

उलझन



1-सुनीता पाहूजा

पैदा करे उलझन
ये अपनापन
खुशी देने को अपनों को
मारते रहते अपना मन,
उनकी खुशी बन जाती
जब अपना जीवन
ख़त्म हो जाती
तब सब उलझन
-0-
 परिचय-
सुनीता पाहूजा
दिल्ली  विश्वविद्यालय  से  वाणिज्य में स्नातकोतर, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से हिंदी स्नातकोतर, अन्नामलई विश्वविद्यालय से बी.एड।
वर्तमान में केंद्र सरकार के राजभाषा विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत ।
भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिडाड एवं टुबैगो, वेस्ट इंडीज़ में जुलाई 2010 से जुलाई 2013 तक द्वितीय सचिव (हिंदी एवं संस्कृति) के पद पर रहते हुए हिंदी प्रचार-प्रसार के लिए कार्य किया,इस दौरान द्विमासिक गृह-पत्रिका यात्रा का सम्पादन कार्य किया ।
समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में लेख व कविताएँ प्रकाशित ।
सम्प्रति-सहायक निदेशक,केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, गृह मन्त्रालय

2-सुदर्शन रत्नाकर

आपाधापी
जीवन है उलझा
ज्यों
कटी पतंग की डोर
नहीं जुड़े
जितना सुलझाओ
उतनी उलझे।
-0
3-कुमुद बंसल

न मैंने चुना
न मैंने बुना
फिर क्यों लिखा गया
मेरे लिए ही रचा गया
उलझनों का जाल
मेरी उम्र के भाल
जीवन कँकरीला
क्यों मुझे मिला
क्या करूँ उपाय
समझ भी न आ
कुछ करना होगा
भेदना होगा जाल
लगा कोई युक्ति
पा लें मुक्ति
-0-
4-सविता अग्रवाल सवि
किरण का इंतज़ार

सूर्य किरण
सूर्य की पहली किरण
छुपती छुपाती,
परदे के पीछे से
कमरे में आकर मेरी
उनींदी पलकें चूमती
मुझे हौले हौले उठाती
कभी गाल थपथपाती
कभी बाल सहलाती
माँ, सी बन के वह मेरे
पास बैठ ही जाती
और तब तक प्यार करती
जब तक मैं बिस्तर छोड़
उठ नहीं जाती
सुनहरी नयी किरणों से वह
मेरा परिचय कराती
मैं भी उनके साथ
घुल मिल जाती
दिन भर मस्ती से घूमती
संध्या को उन किरणों के छिपने पर
थक कर, रात की चादर में लिपट
निद्रा की गोद में आ,
चुपचाप अगली किरण का इंतज़ार करती |
-0-