पथ के साथी

Sunday, June 21, 2015

वृक्षों की छाया



1- (योग-दिवस पर विशेष ज्योत्स्ना प्रदीप के हाइकु)
1











2
उमर भर
अनुलोम -विलोम
करें लहरें
3
सुनो समीर !
भ्रामरी -गुंजन से
दूर हो पीर
4
जगाओ नहीं
शवासन में लेटें
नग योगी को
5
सारे आसन
समय -योग -गुरु
खूब सिखाए
-0-
2-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
नींद छीनते
बरसा कर मोती
खज़ाने वाले ।
2
लोभी है मन
बटोरना चाहता
बिखरा धन।
3
रस का लोभी
जगे रजनी भर
नींद उड़ी है ।
4
मन के मोती
मिलते हैं जिसको
वह क्यों सोए?
5
अमृत खोया
चाँदनी रातों में भी
जो कभी सोया।
6
झरे चाँदनी
सब खुले झरोखे
नींद नहाए।
7
शान्त रात में
टिटिहरी जो चीखी
जंगल जागा।
8
नींद उचाट
यादों की तरी लगी
मन के घाट ।
9
याद जो  आए
सभी साथी पुराने
भीगी  पलकें ।
10
स्नेह की बातें
फिर से याद आईं
फूटी रुलाई ।
11
भोर सुहानी
उतरी है अँगना
मुदितमना।
-0-
( चित्र: गूगल से साभार)