पथ के साथी

Thursday, May 7, 2015

अनोखा ऐसा रिश्ता



अनोखा ऐसा रिश्ता
डॉ०भावना कुँअर

छाया:ऐश्वर्या कुँअर
हर सुबह
ये लॉरीकीट जोड़ा
आवाज़ देता
मैं दौड़ी-दौड़ी जाती।
क्या-क्या कहता
समझ नहीं आता।
वह मेरे यूँ
चक्कर जो लगाता
मैं झट जाती
हाथों में दाने भर
यूँ ही आ जाती।
पलक झपकते
हाथों पे आ बैठते,
मुझे देखते
हौले-हौले चुगते,
तो डरते
न ही मुझे डराते।
कैसा ये रिश्ता!
अटूट औ स्नेहिल।
सब अलग-
भाषा,जाति,रूप औ
रंग, फिर भी
समझते हैं हम
एक दूजे की,
सभी भावनाओं को
जरूरतों को,
ये कितना गहरा
सूझ-बूझ औ
प्यार से लबालब
अनोखा रिश्ता!
भाषा,जाति औ रूप
एक है होता
फिर भी जाने क्यों
मिलता ऐसा
इंसानों के बीच ये
अनोखा प्यारा रिश्ता।
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