पथ के साथी

Wednesday, January 28, 2015

फीकी मुस्कान


सीमा स्मृति की दो कविताएँ

1-फीकी मुस्का

फीकी सी धूप
ठीक उस फीकी सी मुस्का-सी
जो सिमट जाती है, माँ के चेहरे पर
करती बेस्ट ऑफ लक
जवान बेटे को,हर रोज नया इण्टव्यू
देने जाते वक्त
वो फीकी मुस्का
शादी के इश्तिहारों में खोजती
बेटी का भविष्य
वो फीकी मुस्का
रिटायर पति को देती दिलासा
देख बैंक पास बुक का बैलेंस ।
जिन्दगी जीने की
नसीहतें!उपाय,!आइडिया!
टेलीविजन के चैनलों पर देख
सिमट जाती है वही फीकी मुस्का
काश जिन्दगी होती इतनी ही आसान ।
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2-खो

मिश्री -से मीठे,
निबौरी से कड़वे,
कैक्टस से कटीले,
फाहे से सोखते दर्द,
रेत से सरकते,
दलदल से खींचते,
दिन से उजले,
अमावस्या की रात से घनेरे,
गोंद से लिजलिजे,
हवा से हल्के,
एहसास से बहते,
खुली चोट से वीत्स,
हैवानियत से क्रूर,
प्रकृति से मोहक,
आसमान से विस्तृत,
धरा से रहस्यमय,
सागर से गहरे,
वक्त से अनिश्चित,
फूलों से कोमल
मानवीय रिश्तों के ये अनूठे रंग-रूप
बिखरे जीवन के अद्भुत कैन्वस पर
करते कभी हैरान कभी परेशान
कभी करते जीवन को आसान
कभी करें बेचैन
कभी छीन लेते चैन
रिश्ते
प्रश्नों की सलीब---खोजते अर्थ।
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