पथ के साथी

Wednesday, June 10, 2015

वात्सल्य-व्रत





ज्योत्स्ना प्रदीप
ब्रह्मांड में अस्तित्व बनाये रखने वाले वात्सल्य का अपना ही अनोखा चुम्बकीय आकर्षण है और इस पर केवल माताओं का ही वर्चस्व नहीं है- अपितु पिता भी इसके उतराधिकारी है, ये मैंने तब और भी सहज रूप  से जाना जब मेरी माँ ने मुझे एक बड़े ही मधुर अहसास से अवगत कराया 

मेरठ में मेरे नानाजी और नानीजी का परिवार एक माना हुआ संस्कारी परिवार था ।उनके छह संताने थी, जिनमे दो बेटे यानी मेरे दो मामा जी और चार बेटियाँ -अर्थात् तीन मौसियाँ और एक मेरी माँ ... नानी जी जितनी सरल थी ,नानाजी स्वभाव से उतने ही सख्त...गौर वर्ण व सुन्दर कद- काठी के मालिक । वे बैंक में कार्यरत थे ।उन्हें बेटियों से बड़ा स्नेह था।हम सभी इस बात से परिचित है कि उस ज़माने में बेटियों को कॉलेज तक पढ़ाना,सच !काफी गर्व की बात थी । किन्तु वो ज़माना कुछ अलग ही था ,प्रेम-व्यक्त करने का तरीका अनोखा-सा था ।नानाजी की कठोरता में भी कोमलता का गहरा सागर था ।

   मगर कठोर आवरण वाला सीप ही मोती का निवास स्थान बनता है - ऐसा ही कुछ नानाजी के व्यक्तित्व में था ।

मेरी एक मौसी ,जो मेरी माँ से छोटी थी, 'कँवल' नाम था ,सत्रह साल की रही होंगी । एक दिन उन्हें बहुत तेज़ बुखार हो गया था ।यूँ तो बुखार होना कोई बड़ी बात नहीं थी, पर जब मेरठ के सबसे प्रख्यात डॉक्टर को दिखाने के बाद भी बुखार कम नहीं हुआ ,तो सब चिंतित हो उठे । बहुत दिनों तक इलाज़ कराया गया , पर हालत में कोई भी सुधार नहीं हो रहा था । इधर देवी माँ के नवरात्र भी आरम्भ हो रहे थे । यह कथन काफी प्रचलित है कि जब दवा में दुआ मिली हो तो निश्चित रूप से संजीवनी-बूटी  का ही कार्य करती है ।कदाचित् नानाजी ने भी यही सोचकर देवी माँ की उपासना के साथ -साथ पूरे दिन में सिर्फ दो लौंग के सहारे ही नौ दिन तक व्रत करने शुरू कर दिए!कितना कठिन है ऐसा व्रत रखना! मेरी माँ बताती है कि नौवें दिन नानाजी की हालत बिगड़ने लगी थी ...उनका पेट अंदर की ओर धँस गया था ,उनसे चला भी नहीं जा रहा था .. किन्तु कहते है न तपस्या का फल मिलता ज़रूर है ....मौसीजी का बुखार धीरे-धीरे उतरने लगा ,परिणामस्वरूप नानाजी के भी जान में जान आई सच !नव रात्र ही थे वो ,जिन्होंने आने वाली भोर को नए ही रंग में ढाल दिया था ।

जहाँ आजकल कोख में ही भ्रूण -हत्या के मामले सामने आ रहे है वहीं चार-चार बेटियों का पिता पूर्ण त्याग और श्रद्धा से वात्सल्य -व्रत रखता हो ,यह अपने में ही आप में बड़ा अनुकरणीय उदाहरण है । मेरी माँ जब भी ये बात सुनाती है तो मुझे ऐसे पवित्र परिवार का हिस्सा होने पर गर्व महसूस होता है और मेरे नम नयन नाना जी के वात्सल्य का अभिषेक करने लगते है ।
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8 comments:

  1. केवल बेटियों के लिए ही नहीं अपितु समाज के लिए बहुत ही सुखकर है आपका यह संस्मरण...तपते रेगिस्तान में अमृत की बूँद सा ... !
    आपकी रचनाओं में आपका परिवार ...उसकी उदात्त भावनाएँ , संस्कार दृष्टिगोचर होते हैं ज्योत्स्ना जी ..हार्दिक बधाई !!

    सादर नमन वंदन के साथ
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  2. Man ke komal kono ko sahla sa gaya aapka sansmaran itna payar itni sradha naman hai unko ...

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  3. बेटियों के प्रति इतना स्नेह रखने वाले परिवार को मेरा नमन। आपका संस्मरण पढ़ कर मन सुख से भीग गया। हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना प्रदीप जी!

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  4. आदरणीय नाना जी को मेरा नमन!
    आज हमें ऐसे ही महापुरुषों की ज़ोरदार ज़रूरत है!

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  5. एक बेटी के स्वास्थ्य के लिए चार बेटियों का पिता व्रत करे ,यह वात्सल्य आज एक विरल वस्तु है. क्या हमारा समाज इससे कोई सबक ले पाएगा? ऐसे पिता को प्रणाम. मुझे पूरी उम्मीद है हमारे नौजवान के दिल में बात घर कर जाएगी.सुरेन्द्र वर्मा

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  6. आपके संस्मरण ने बेटियों की प्रासंगिकता को सार्थक रूप से उजागर किया है इतना मार्मिक की मन पूरी तरह बेटियों की संवेदना में डूब गया
    हार्दिक बधाई

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  7. aadarniya himanshu ji ka dil se abhaar ..yahan sthaan dene ke liye...aur aap sabhi ka bhi...utsaahvardhan pran -vaayu sa kaary karta hai ...punh abhaar!

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  8. बेटी के लिए ये एक पिता का निर्मल स्नेह था...| सच में बेटियों को जन्मने से पहले ही मार देने वाले आज के समाज के सामने यह एक बहुत बड़ा उदहारण है |
    आपके नानाजी को सादर नमन...और आपको बधाई और आभार, ये संस्मरण हमसे बांटने के लिए...|

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