पथ के साथी

Wednesday, February 25, 2015

आईना



    डॉ आरती स्मित की कविताएँ
1-आईना
 युगों बाद
मुझे देख
आईना मुस्कुराया
मैं था
नया नया-सा
उद्दीप्त
नवल धवल
ऊर्जा से भरा हुआ
मानो
वर्षों बाद जिया हूँ
ज़िंदगी;
युगों बाद
ख़ुद से मिला हूँ मैं।
मैं भी मुस्कुराया
आईना देखकर!   
-0-
  2- देह के भीतर                        

जेठ की दाघ
वाणी में----व्यवहार में
क्या हुआ?
जो मुस्कान क़ैद हो गई
उसके ही रचे क़िले के अंदर!
मर्यादा का पहरा
और
वर्जनाओं का प्राचीर
चंदोवा समझ तान लिया है
और ख़ुद को
नैसर्गिकता से दूर ---बहुत दूर कर
वह संतुष्ट है।
बस !
उसकी हँसी का बसंत
अब कभी नहीं खिलता!
सीने में दबा
पतझड़
आग चुनता है
और बरस जाता है
जेठ की दाघ बनकर!
जला देता है
तन और मन ,
झुलस जाती है संवेदना
मर जाती है एक स्त्री
देह के भीतर!
-0-
 3   - अवशेष

तुम्हें तुमसे मिलाने की कोशिश में
वह कब खो गई ?
फुरसत के क्षणों में
जब ख़ुद को टटोला
तो
सिवाय विखंडित  अवशेषों के
कुछ भी हाथ ना था !
तुम्हें सँवारने की धुन में
उसका वजूद
उससे छूट कर                                                  
कब तितर-बितर हुआ ?
उसे एहसास नहीं!
आज
जब तुम
जीवन के गीत सुनाते हो
वह
बटोर रही होती है
तितर-बितर और
विखंडित
अपने अवशेषों को!
 -0-  
4- माँ ! बोलो तो

कोख में
दम तोड़ता शिशु
पूछता है माँ से
माँ !
मेरा अपराध क्या है?
क्यों रोक रही मुझे
दुनियाँ में आने से?
क्यों नहीं दिखाना चाहती
यह स्वप्निल संसार?
माँ ! बोलो तो !
मैं तुम्हें देख नहीं सका
मगर महसूस किया है
तुम्हारा ममत्व
फिर, क्यों विवश हो
ममता के दमन लिए?
क्या, अबतक
तुम्हारी संवेदना
मुझसे जुड़ी नहीं
या कि
तुम हो गई संवेदनशून्य
मुझे मिटाने के प्रयास में ?
माँ !
चुप न रहो;
कोई क्लेश न रखो मन में,
क्या?
मैं तुम्हारी चाह नहीं
या कि
वर्तमान महँगाई ने
तुम्हें किया विवश
मुझे
बेवज़ूद करने के लिए !
माँ !
मैं मिट रहा हूँ
लेकिन
क्या मेरे सवाल
मेरी जिजीविषा
मिटा पाओगी कभी ?
माँ , बोलो तो !
( वर्तमान समय केवल बालिका भ्रूण हत्या का नहीं, वरन् बालक भ्रूण हत्या का भी गवाह है। शिशु भ्रूण को यह कविता समर्पित है।  )









         


6 comments:

  1. मार्मिक, भावपूर्ण कविताएँ !
    बधाई आरती जी !

    ~सादर
    अनिता ललित

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  2. nari jeevan ki vidambana aur bhrun hatya par likhi kavitayen bahut hi sunder hain .arti ji badhai .
    pushpa mehra.

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  3. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ! हार्दिक बधाई आरती जी !

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  4. marmik v bhaav purn rachna ke liye bahut badhai arti jee ..

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  5. बहुत भावपूर्ण हैं सभी...पर `देह के भीतर' और `अवशेष'...ये दो रचनाएँ एक नारी-जीवन की पीड़ा को बड़ी गहनता से व्यक्त कर गई...|
    हार्दिक बधाई...|

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  6. sabhi rachnayen bahut bhavpuran hai meri badhai....

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