पथ के साथी

Friday, October 17, 2014

जीवन के सपने



1-डॉ सुधा गुप्ता
1
 चौबीसों घण्टे
पागल-सा नाचता
मैट्रो शहर ।
2
हर रात को
ज़ख्मी कर छोड़ता
कोई हादसा ।
3
महानगर
मातृत्व बोझ बना
जन्म दे, फेंका ।
4
महानगर
लुटेरों की दुनिया
खोई मुनिया ।
5
कैसा त्योहार
मोबाइल ने किया
जीना दुश्वार ।
6
जाने क्या खोया
हर पल खोजता
महानगर ।
7
बदहवास
फिरकी सा घूमता
मेरा शहर ।
8
मौत झपट्टा
जीवन के सपने
खाक़ में मिले ।
-0-
2-ज्योत्स्ना शर्मा
1
जिए जा रहा
ले के पीड़ा नगर
गाँव की घनी ।
2
बने जो रिश्ते
समझ ही न आया
कौन पराया ।
3
सजे सपने
शहरी धूल -धानी
हुए अपने ।
4
दिल तो वही
शहर में लगाया
गाँव से आया ।
5
घर से दूर
अनगिन उम्मीदें
बसा शहर ।
-0-
3-सुभाष लखेड़ा
1
मेरा शहर
जागता रहता है
आठों पहर।
2
शहर आया
मैंने देखे सपने
खोये अपने।
3
भीड़ के बीच
शहर का इंसान
बना सामान।
-0-
4-ज्योत्स्ना 'प्रदीप'
1
पढ़े हथेली
ऊँचे से भवनों की
नभ-ज्योतिषी।
2
पल में बनी
छोटी -सी बालकनी
पुष्प वाटिका।
3
हवा हया से
हुई बेहाल ,देख
मेट्रो की चाल।
4
पिता -से पालें
ये विश्वविद्यालय
नए-उजाले ।
-0-
5- रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
आँखों में ख्वाब
सुनहरे कल के
जागे शहर ।
-0-
6-प्रियंका गुप्ता
1
शहर ने दी
सपनों की उड़ान
सूर्य तलक ।
-0-


7-अनिता ललित

1

है हड़ताल!
ग़रीब के पेट का
पूछो न हाल।

2

बढ़ी है भीड़

हुआ है चक्का जाम
छाया आक्रोश


3

सुर्ख़ी में छाए
डॉक्टरों के धरने,
जीवन  लीलें


4
संवेदनहीन
शहर की गलियाँ
सुनें न पीर।
5
छूटता साथ,
हंगामा -भगदड़
शहरी बात।
-0-