रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जब-जब छुपकर वार करेगा
तब-तब वो मुस्काएगा ।
गुण जीभर कर गाएगा ।।
दौर मुसीबत का जब होगा
साथ रहेंगे बेगाने ।
वह अपनों का लगा मुखौटा
दूर कहीं छिप जाएगा ।।
घाव -लगे तन-मन पर लाखों
बैरी मरहम ला देंगे ।
उसके वश में जितना होगा
उतना नमक लगाएगा ॥
इस बस्ती में बैठके प्यारे
प्यार –वफ़ा की बात न कर ।
बंजर दिल की इस धरती पर
उपवन कौन खिलाएगा ॥
अपनी चादर कितनी मैली
समय नहीं जो देख सके ।
उजली चादर जिनकी दिखती
उस पर दाग़ लगाएगा ॥
0-(14-12-2007)