पथ के साथी

Wednesday, May 28, 2014

वॉन पब्लिक लाइब्रेरी ! वार्षिक काव्य संगोष्ठी

वॉन पब्लिक लाइब्रेरी ! वार्षिक काव्य संगोष्ठी
         

रामेश्वर काम्बोज, श्याम त्रिपाठी , सरोज सोनी  

   25 मई, 2014, कनाडा के  वॉन शहर की वॉन पब्लिक लाइब्रेरी ! वार्षिक काव्य संगोष्ठी के अवसर पर काव्य-पाठ का आयोजन किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री श्याम त्रिपाठी ( संरक्षक और मुख्य सम्पादक हिन्दी चेतना) जी ने की और संचालन श्रीमती  सरोज सोनी ने किया । संयोजक थे  वॉन पब्लिक लाइब्रेरी के  श्री सुब्रह्मण्यम जी ।  इस अवसर पर  सुमन घई ( सम्पादक-साहित्यकुंज डॉट नेट), रामेश्वर काम्बोज ( कार्यक्रम के मुख्य अतिथि),अनिल पुरोहित,गोपाल बघेल, प्रो देवेन्द्र मिश्र,सुरेन्द्र पाठक,  श्रीमती प्रेम मलिक, सविता अग्रवालसवि , उषा बधवार , प्रमिला भार्गव आदि साहित्यकार उपस्थित थे ।
       

प्रथम पंक्ति-सविता अग्रवाल , गोपाल बघेल, प्रेम मलिक

  
कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन के साथ  सरोज सोनी ,गोपाल बघेल,सविता अग्रवालसविउषा बधवार  की सरस्वती वन्दना से हुआ । इस अवसर पर सविता अग्रवाल  ने  हिन्द देश हमारा , पतझर में पत्तों की चादर / पलक झपक उड़ जाती है---काटते रहना काटने वालो / बार-बार मैं उगूँगा  सुनाई साथ ही झील के होंठ/ हवाओं का चुम्बन / थर्याया  जल  हाइकु से श्रोताओं को मुग्ध किया।
उषा बधवार ने बेटियों महत्त्व को रेखांकित करत हुए कहा-बेटियाँ होती बड़ी प्यारी

उषा बधवार-कविता पाठ

हैं/ ब्रह्मा ने बेटियाँ स्वर्ग से उतारी हैं
तथा तन्हाई के लिए तरु की छाया का बटोही/ मैं और मेरी तन्हाई  भावपूर्ण कविताएँ प्रस्तुत कीं।
सरोज सैनी ने -हँसी-रुदन का खेल रचा, रक्षा करोगे पीर हरोगे; प्रमिला भार्गव ने पीढ़ियाँ दर-पीढ़ियाँ कुर्बानियाँ देती रही तथा रेल का डिब्बा कविताएँ सुनाईं ।
जयश्री ने भक्ति गीत से सबको भाववोभोर कर दिया
श्रीमती प्रेम मलिक ने काव्यास्वाद परिवर्तित करते हुए अपनी सरस हास्य की कविताएँ सुनाकर सबकी उदासी दूर कर दी । हम तो बीवी तुमसे बस करते हैं गुज़ारा और बीवी हो गई पास मियाँ हो गए फ़ेलको बहुत सराहा गया । इनकी हास्य कविताएँ सी डी में भी उपलब्ध हैं।

सुमन घई-कविता  पाठ

सुमन घई जी का नाम किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है । आपकी कविताएँ  मार्मिक एवं एकदम अछूते विषय पर केन्द्रित रहती हैं।खिड़की के टूटे शीशे से  झरती एक किरन का चित्र  गहरे तक छू गया और कहाँ है वो गर्मी का मौसम , कहाँ है बीता बचपन सबको अतीत की स्मृतियों से जुड़ी गहरी उदासी में डुबो गया ।
अनिल पुरोहित लम्बी कविताओं के सर्जन में निपुण तो हैं ही, साथ ही गहन भावबोध को बनाए रखने में भी सक्षम हैं।  सीता के वनवास पर छाए सन्नाटे की प्रश्नाकुल करती बोझिल चुप्पी को रूपायित करती  पंक्तियाँ-दब गई बच्चों की किलकारियाँ/ सभी लगते भयभीत हृदय को मथ गई । अन्य कविता-बींध छलनी कर दिया  हर तरफ़ से चलते शब्दों के बाण ने भी प्रभावित किया ।

सुरेन्द्र पाठक

सुरेन्द्र पाठक जी  की  पिछले दिनों बाइपास सर्ज़री हुई ।फिर भी उनकी जीवन्तता की दाद देनी पड़ेगी-अच्छा हुआ या बुरा हुआ / मेरे दिल का बाइपास हुआ हास्य कविता से  सबको गुदगुदाया।

गोपाल बघेल

प्रो देवेन्द्र मिश्र ने हैं नहीं सुरक्षित माँ बहनें / सब ओर दुश्शासन घूम रहे ने बहुत प्रभावित किया ।श्रीमती देवेन्द्र मिश्र ने नियाग्रा जल प्रपात की मनोभावना पर   मैं तो ठहरा एक मनमौजी अपनी धुन में झरता जाऊँ सुनाई ।रामेश्वर काम्बोज ने कुछ मुक्तक और नवगीत प्रस्तुत किए ।गोपाल बघेल की दो पुस्तकों मधुगीति और आनन्द गंगा का विमोचन भी आज ही हुआ । बघेल जी ने इन पुस्तकों से क्रमश: कल बादलों की ओट से / किसने तका किसने लिखा( पृष्ठ-83)  और आज कुछ आनन्द के क्षण/ मन डुबाते जा रहे(पृष्ठ-51)  कविताएँ सुनाईं।
आज के कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री श्याम त्रिपाठी जी ने उमड़ रहा आशाओं का समन्दर /एक नया सूर्य उगेगा/ मिलेगा जन जन को प्रकाश/ भारत का होगा उन्नत ललाट ,महँगाई तू कब तक बढ़ेगी ? / जब तक यह दुनिया रहेगी  कविताओं के सहज वाचन से सबको मुग्ध कर दिया । 

काम्बोज और त्रिपाठी जी


प्रमिला भार्गव -कविता-पाठ

  
इस कार्यक्रम को सम्पन्न करने औरर हिन्दी की पुस्तके प्रदर्शित करने में श्री सुब्रह्मण्यम जी का योगदान प्रशंसनीय रहा । यह नहीं लगता था कि हम भारत से बहुत दूर हैं । हिन्दी के प्रति यहाँ का समर्पण भाव सराहनीय है ।
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