पथ के साथी

Wednesday, May 7, 2014

अभी तो दूर है दिल्ली


[दिल्ली के स्वरूप के बारे में राजनैतिक सोच से हटकर इसे एक अच्छी कविता के तौर पर पढ़िएगा तो आनन्द आएगा ]
श्याम सखा श्याम
1-अभी तो दूर है दिल्ली, बहुत ही दूर है दिल्ली
  बड़ी नाजुक  बड़ी दिलकश ,मगर मगरूर है दिल्ली
2-न कौरव ही समझ पा न पांडव थे भुला पा
  मरे दोनो थे लड़-लड़ के बड़ी ही क्रूर है दिल्ली
3-जो आया लूटने इसको ,लुटा खुद हुस्न पर इसके
  नवाबों की चहेती है कि मिस्ले हूर है दिल्ली
4-कभी नादिर यहाँ आया इसी ने गज़नी भरमाया
  सिकन्दर ने कहा थककर कि सचमुच दूर है दिल्ली
5-लगा है खून मुँह इसके बड़ी चांडाल ठगनी है
  जिसे ना वक्त भरपाया वही नासूर है दिल्ली
6- रखैली थी रखैली है ,किसी की ये न रानी है
  खुद अपने दिल के हाथों रहती  मजबूर है दिल्ली
 8-लुटी सौ बार लेकिन फिर सँभल बैठी ,सँभल बैठी
  कि द्रुपद की बेटी -सी नित नई इक हूर है दिल्ली
9-गुलामों की ये रानी थी कि मुगलों की थी शहज़ादी
   हुए बरबाद सब के सब, हुई काफ़ूर है दिल्ली
10-यहाँ हरिदास के चेले ने छेड़ा राग मल्हारी
    बजाया बैजू ने जो था, वही सन्तूर है दिल्ली
10-कभी हेमू कभी सूरी बने थे शाह दिल्ली के
  करे यूँ ख्वाब सबके यार चकनाचूर है दिल्ली
11-मिली दो गज जमीं ना जब बहादुरशाह को यारो
   कहा गालिब ने रो- रो कर - हुई बेनूर है दिल्ली
12-रहे प्यासे मराठे थे, लड़े  थे  बाप बेटे भी
   कि मारा भाई ने भाई , हुई रन्जूर  है दिल्ली-
13-नहीं सूरज छुपा करता तुम उनका हश्र भी देखो
   गये पिटकर निहत्थे-से हुई मशहूर है दिल्ली
14- मरे  गाँधी यहीं पर थे अमन की राह पर चलकर
    कि नेहरू खानदाँ  को तो बनी लाटूर है दिल्ली
15-कि राजा हों कि रजवाड़े, गरीबों के भी पिछवाड़े
    करे पूरे न पर दे ख्वाब भरपूर है दिल्ली-
16 -सभी धरमों सभी जातों ,सभी रंगो को भाती है
   सभी नेता कहें इसको कि चश्मेनूर है दिल्ली
17-कि लन्दन हो कि पेरिस हो ,भले ही हो वो अमरीका
    किसी से कम नहीं यारो कि कोहेनूर है दिल्ली
18-बुरा देखो बुरा बोलो सुनो भी मत बुरा तुम यार
  भुला बातें सयानी अब हुई लंगूर है दिल्ली
19-तमिल आये बिहारी भी कि बंगला और कश्मीरी
  सभी को काम यूँ देती  बना मजदूर है दिल्ली
20-यहाँ पर स्टोव फटते हैं ,दुशासन चीर हैं हरते
   लुटे बस में कभी इज्जत, कभी तन्दूर है दिल्ली
21-यहाँ पर घात होते है ,अजी दिन रात होते हैं
  मगर सुनती है कब किसकी, नशे में चूर है दिल्ली
 22-कभी वी.पी ,कभी चन्दर ,कभी गुजराल आया था
   रहे गुलजारी भी कुछ दिन घुमन्तू टूर है दिल्ली
 23-चरण के पाँव कब जम पाये, थे मोरारजी हारे
  जो पचता देवगोड़ा को क्या मोतीचूर है दिल्ली
24-बिना ही ताज करती राज वो इटली की बेटी है
 सुनो दीदी न कलकत्ता न कोयम्बतूर है दिल्ली
25-तड़पता है मुलायम सिंह रटे लालू जपे माया
  कि अडवानी को लगती खट्टा  इक अंगूर है दिल्ली  
26-हैं कुछ तो धूप में कुछ छाँव में कुछ दाव में बैठे
   कि मोदी और राहुल को रही अब घूर है दिल्ली
27-सुनो अन्ना,सुनो जी रामदेवा, केजरी, बेदी
 जरा सोने दो इसको अब ,कि थककर चूर है दिल्ली
28-परायों से न घबराई  सदा उठके चली आई
   कि लूटा जब भी अपनों ने हुई माजूर है दिल्ली
29-नहीं खाली गया कोई सवाली बन के जो आया
   मिली शुहरत किसी को धन करण सी शूर है दिल्ली
30-यहाँ खानाबदोश आ कई दरवेश भी आ
   लुटाती जान सब पर है बनी मन्सूर है दिल्ली
31-यहाँ तो जो भी आता है शरण फौरन ही पाता है
 दलाईलाम की खातिर  तो कोहेतूर है दिल्ली
32-मिटा पाया न कोई था कभी इसकी रिवायत को
 कि छाजबसे पंजाबी बनी संगरूर है दिल्ली
33-गड़ी किल्ली यहीं पर है मगर ढीली वही तो है
  सदा झूमे है मस्ती में बड़ी मखमूर है दिल्ली
34-इसे पाने के लालच में सखा सीखें सभी हिन्दी
  सियासत की ये मजबूरी बनी दस्तूर है दिल्ली

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