पथ के साथी

Tuesday, March 18, 2014

ज़िन्दगी पहेली


सीमा स्मृति
    1
जिन लम्हों को समझ ज़िन्दगी,
जिया मैंने
आज एक अजब पहेली बन
ज़िन्दगी में हैं छाए ।
2
बरसों साथ जीने से क्या होता है
कुछ तहें साथ जीने से नहीं
वक्त की तपन में ही
खुला करती हैं।
3
गजब पहेली है ज़िन्दगी
जितनी सुलझी लगती है
उतनी ही नई बुनाई
बुन लिया करती है।
4
आज भी कुछ बीते लम्हे
प्रस्फुटित होते है नयी कोंपल बन
मन उल्लास में हिलोरे लेना चाहता है
ठीक उसी क्षण
वो वर्तमान नामक दराती से
काट डालते हैं बेदर्दी से कोंपलें।

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