पथ के साथी

Sunday, October 12, 2014

प्यारी -सी मुस्कान



1-आपसे अर्ज है
                       
सुभाष लखेड़ा 

सुनिए ! आपसे एक अर्ज है
ऐसा कहना मेरा फ़र्ज़ है
क्योंकि है मेरी चाह
आज से चलें नई राह
दिखे जो सामने
उसे आप दीजि
एक ऐसी सौगात
जो खरीदनी नहीं है
न आपको जाना कहीं है
रहे आपके पास दिन - रात
आप उसे दें सिर्फ एक प्यारी -सी मुस्कान
आप यदि ऐसा करेंगे
यकीन करें, खुशियों से
महक उठेगा हम सभी का  हिदुस्तान।
 -0-
2-काश !

कृष्णा वर्मा

कितने सुहाने मस्ती भरे अभ्रक- से
चमकीले दिन थे बचपन के
छोटी-छोटी चीज़ें बड़ी-बड़ी खुशियाँ
हल्के-फुलके बस्ते भारी ज्ञान
संस्कारों की छाँव तले ठुमकता था
नन्द ही आनन्द चहुँ ओर
बस्ते में होती थीं केवल
दो किताबें दो कापियाँ
एक पक्के और एक कच्चे काम की
एक टीन की रंग-बिरंगी आयताकार डिबिया
या यूँ कहें कि पेंसिलदानी
उसमे एक आधी और एक पूरी नई पेंसिल
और गढ़ने को एक शार्पनर
दो रबड़ एक इत्र से भरा खुशबूदार 
और एक सादे रंग का
कितनी खुशी बाँटते थे दोनों
एक अपनी महक से और दूजा
मेरी गलतियों को मिटा के
जहाँ ज़रा गलती हुई नहीं कि
झट से पन्ना साफ 
वह फिर नया का नया
फिर उकेरती नए शब्द
कितना भला लगता था
जीवन की सहज  कच्ची पगडंडियों पर चलना
कितनी भली बेख़बर सी थी उम्र
चिंता की परिभाषा से निपट अंजान
भरे थे जिसमें कोमल एहसास
अल्हड़ सपने जादू और सौ-सौ रंग
कोई भी गलती कितनी
आसानी से मिट जाती थी
चली ज्यों-ज्यों उम्र की पक्की राहों पे
पग-पग सोचों की खूँटी पे
टँगा पाया अनगिन प्रश्नों को
उलझ के रह गए सवालों के रेशे
खिंच गईं कई आड़ी-तिरछी लकीरें
काश! मिल जाता कोई
अब भी ऐसा रबड़ जो मिटा डालता
इन दुख चिंता भय और
नफरत की लकीरों को
साफ हो जाता हृदय का पन्ना पुन:
उस कॉपी के पन्ने की तरह ।
-0-

9 comments:

  1. सच! मुस्कान से बढ़कर कोई उपहार नहीं। सुन्दर कविता... आ. सुभाष लखेड़ा जी

    ~सादर
    अनिता ललित
    -------------------------------------


    काश! वो बचपन के मासूम दिन वापस आ सकते। काश! हम कभी बड़े ही न होते...
    बहुत सुन्दर भाव एवं अभिव्यक्ति ....आ. कृष्णा वर्मा दीदी जी।

    ~सादर
    अनिता ललित

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  2. दोनों ही रचना जीवन में ख़ुशी लाने के लिए बड़ा सादा सा उपाय बता रही है. सुभाष लखेरा जी ने बहुत सही कहा कि हमारे एक मुस्कराहट से कईयों के चेहरे पे मुस्कान खिल सकती है और इस श्रंखला से पूरा भारत खिल सकता है. कृष्णा जी की रचना में बचपन एक बार फिर से जी गया. गलती को मिटाने वाला रबड़ काश आज भी होता तो सबकी ज़िन्दगी खूबसूरत हो जाती. बहिन भावपूर्ण रचना के लिए आप दोनों को बधाई. काम्बोज भाई का धन्यवाद.

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  3. दोनों कविताएँ मन को छू गईं । सहज जीवन जीने की कला का सन्देश प्रभावशाली मगर सहज शैली में दिया गया है । दोनों कवियों को बधाई ।

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  4. मेरी रचना को सहज साहित्य में स्थान देने के लिए अतिशय आभार भाईसाहब !
    प्रिय मित्रों आपको मेरी रचा पसंद आई बहुत-बहुत धन्यवाद !

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  5. सुन्दर संदेश देती हुई बढ़िया कविता.....सुभाष लखेड़ा जी बहुत बधाई !

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  6. दोनों ही रचनाएँ अनुपम हैं | मन को सुकून देती प्रस्तुति के लिए हृदय से आभार ..बधाई !

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  7. Dono hi rachnao ka Javab nahi par muskaan badi mushkil ho gayi hai, or galtiyan mita dene vali soch to man men Ghar kar gayi Kash aisa ho pata dono ko meri hardik badhai....

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  8. aap dono ne hi bahut sunder,masoom tatha pyari kavita likhi hai ...subhashji , tatha krishna ji ko sadar naman ke saath badhai.

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