पथ के साथी

Monday, December 23, 2013

तुम दर्द नहीं हो

डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा

मधुर-मधुर ये गाया करती ,
सुन्दर छंद सुनाया करती ।

तुम कान्हा हो तो मधुबन में ,
रसमय रास रचाया करती ।

शिवमय होकर पतित-पावनी ,
गंगा -सी बह जाया करती ।

राम ,रमा-पति कण्ठ लगाते ,
मुग्धा बहुत लजाया करती ।

चाहत थी जो तुम छू लेते ,
कलियों- सी महकाया करती ।

तुम बिन गीत-ग़ज़ल में कैसे ,
इतना रस बरसाया करती ।

अच्छा है ! तुम दर्द नहीं हो ,

वरना कलम रुलाया करती ।