मंजुल
भटनागर
समुन्दर
उछाल मारता ,
कहता बरबाद दरीचों का अफ़साना
नदियाँ बस खामोश हैं ।
शहर लापता थे
घरौन्दे जमींदोज़
वो कौन लापता था ,पता चला आया जब होश
समुन्दर उछाल मारता,
नदियाँ बस खामोश हैं ।
शहर लापता थे
घरौन्दे जमींदोज़
वो कौन लापता था ,पता चला आया जब होश
समुन्दर उछाल मारता,
नदियाँ बस खामोश हैं ।
बोधिसत्व भी जल उठा ,
बोधिसत्व भी जल उठा ,
लहू बन कैनवस रंग चुका
यह कौन दर्द बाँट रहा , प्रकाश- पुंज ढाँप रहा
फिर भी बुद्ध खामोश है ।
फुहारें हैं, सावन पुरजोर है
रास्तों में उगी टहनियों की कहानी कुछ और है
फूल तो खिलें हैं कई ,जो बिछड गए
उनकी निशानियाँ कुछ और हैं
आँखें इंतज़ार करतीं ,जुबाँ कुछ बोलती है
नश्तर चुभते जब सुर्खियाँ कुछ और बोलतीं
जो गुजरे उस जमीं से पुरुषार्थी
कुर्बानियाँ उनकी कुछ और बोलतीं
समुन्दर उछाल मारता ,
यह कौन दर्द बाँट रहा , प्रकाश- पुंज ढाँप रहा
फिर भी बुद्ध खामोश है ।
फुहारें हैं, सावन पुरजोर है
रास्तों में उगी टहनियों की कहानी कुछ और है
फूल तो खिलें हैं कई ,जो बिछड गए
उनकी निशानियाँ कुछ और हैं
आँखें इंतज़ार करतीं ,जुबाँ कुछ बोलती है
नश्तर चुभते जब सुर्खियाँ कुछ और बोलतीं
जो गुजरे उस जमीं से पुरुषार्थी
कुर्बानियाँ उनकी कुछ और बोलतीं
समुन्दर उछाल मारता ,
नदियाँ बस खामोश हैं।
-0-
-0-
समय का दर्द कहती प्रभावी रचना ...बहुत बधाई मंजुल जी
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
मन शान्त हो तो विश्व अच्छा दिखता है, विश्व सच्चा दिखता है।
ReplyDeletephool to khile hain kai..... manjul ji apki rachna badalte samay ki kahani kah rahi hai .
ReplyDeletepushpa mehra.
बहुत धन्यवाद रामेश्वर जी ,मेरी कविता को स्थान देनें के लियें ,शुभ कामनाएँ
ReplyDeleteसामयिक दर्दीला गीत
ReplyDeleteबधाई
प्रवीण पाण्डेयजी Pushpa Mehraजी Manju Guptaजी ज्योति-कलश जी आप सभी गुणी जन का आभार ,धन्यवाद कविता पर टिपण्णी के लिए ,शुभ कामनाएं .
ReplyDeleteसामयिक प्रभावी रचना! मंजुल जी, बधाई !
ReplyDeleteसमय के प्रवाह में बहुत कुछ बह जाता है ...
ReplyDeleteबहता हुआ दर्द..
ReplyDeleteबहुत मार्मिक...कितना दर्द है...सीधे दिल में उतरती है ये कविता...|
ReplyDeleteबधाई...|
प्रियंका गुप्ता
आज की त्रासदी का दर्द बया करती यह रचना दिल को छू गयी... सादर
ReplyDelete