पथ के साथी

Monday, February 25, 2013

कचरा बीनती लड़की


-मुरलीधर वैष्णव
माँ ने भले ही जन्म दिया हो उसे
मजदूरी करते हुए
कचरे के आस पास
लेकिन फेंका नहीं उसे
कचरे के ढेर पर उसने
जैसे फेंक दिया था कई कई बार
बड़ी हवेली वालों ने
अपने ही खून को
बड़ी हो गई है अब वह
उठ कर मुँह अँधेरे रोजाना
निकल पड़ती है वह बस्तियों में
कचरा बीनने
उसके कंधे से लटका
यह पोलिथीन का बोरा नहीं
किसी योगिनी का चमत्कारी झोला है
जिसमें भर लेगी वह
पूरे ब्रह्माण्ड का कचरा
सीख लिया है उसकी आँखों ने
खोजना और बीनना
हर कहीं का कचरा
भाँप लेती है उसकी आँखें
आवारा आँखों को भी
और बीन लेती है वह
उनमें भरे कचरे को भी
शाम को जब रखती है वह झोला
कबाड़ी के तराजू में
उठती है उसमें से तब
तवे पर सिकती रोटी की महक
उगता है उसमें से
उसका छोटासा सपना
कचरा बीनती है वह
ताकि कचरा न रहे
हमारे बाहर
और हमारे भीतर भी

18 comments:

  1. बहुत खूब ...!!

    मैंने भी कभी इक ऐसी ही कविता लिखी थी ...कहीं डायरी के पन्नों में पड़ी होगी ....!!

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  2. और कभी बदलाव होगा ...अब इसकी उम्मीद भी नहीं है

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  3. कचरा बीनती है वह
    ताकि कचरा न रहे
    हमारे बाहर
    और हमारे भीतर भी....बहुत सुन्दर ...सारगर्भित पंक्तियाँ आपकी ...बहुत बधाई !!
    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  4. Bahut hi samvedansheel aur saargarbhit abhivyakti.

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  5. ~सीख लिया है उसकी आँखों ने
    खोजना और बीनना
    हर कहीं का कचरा
    भाँप लेती है उसकी आँखें
    आवारा आँखों को भी
    और बीन लेती है वह
    उनमें भरे कचरे को भी~
    हर जगह कचरा बिखरा पड़ा है.... कहाँ-कहाँ से बीनती होगी बेचारी.....
    बहुत कुछ कह गयी ये गहन भाव लिए रचना...!
    ~सादर!!!

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  6. कचरा बीनती है वह
    ताकि कचरा न रहे
    हमारे बाहर
    और हमारे भीतर भी

    एक सार्थक सोच ...सुंदर रचना ....
    आभार ॥!

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  7. हमें भी तो अपने मन का कचरा निकाल फेंकना होगा।

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  8. सामाजिक विषमता को गहनता से अनुभूत कराती मार्मिक कविता...

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  9. बहुत सुन्दर अर्थान्वित रचना।

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  10. कचरा बीनती है वह
    ताकि कचरा न रहे
    हमारे बाहर
    और हमारे भीतर भी....बहुत सुन्दर ...सारगर्भित पंक्तियाँ आपकी ...बहुत बधाई !!
    सादर

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  11. कचरा बीनती है वह
    ताकि कचरा न रहे
    हमारे बाहर
    और हमारे भीतर भी..

    बेहतरीन पंक्तियाँ ...आभार

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  12. सहज शब्दों में गहरे भाव ..बहुत सुंदर रचना ...

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  13. सहज शब्दों में गहरे भाव ..बहुत सुंदर रचना ...

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  14. उठती है उसमें से तब
    तवे पर सिकती रोटी की महक
    bhaiya under soch hai aur pyari panktiyan

    कचरा बीनती है वह
    ताकि कचरा न रहे
    हमारे बाहर
    और हमारे भीतर भी
    bhaiya anmol panktiyan hai .
    bahut hi sunder kavita hai.............................
    saader
    rachana

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  15. बहुत गहरे अर्थ लिए हुए एक खूबसूरत रचना...बधाई...|

    प्रियंका

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