पथ के साथी

Sunday, September 9, 2012

केवल पाना प्यार नहीं (गीत)

मुरलीधर वैष्णव

मुरलीधर वैष्णव

मैं समझा कुछ तुम भी समझो
केवल पाना प्यार नहीं
प्यार तो है शृंगार रूह का
प्यार कोई व्यापार नहीं
मैं समझा....................

जब तक भीतर अहं भरा था
दर के बाहर प्यार खड़ा था
घट के पट जब खोल दिये
सब कुछ रोशन अँधियार नहीं

मैंने खोकर जिसको पाया
पारस जो राधा ने पाया
शीश उतारे बैठा हूँ भीतर
कबीरा अब इंतजार नहीं
मैं समझा........

रात चाँदनी जलती देखी
धूप कुँए में छुपती देखी
कहाँ थी तू जब टूटा तारा
इस हिज्र का कोई पार नहीं
मैं समझा..........
मैं टूटा नहीं जब टूटे वादे
तोड़ गई मुझे तेरी यादें
तेरी आहट नींद चुराती रही
तुम बिन प्रिय अभिसार नहीं
 मैं समझा..........
मेरी हथेली तेरी लकीरें
क्या बाँचे कोई तकदीरें
तेरी स्मित ही मेरी किस्मत
बाकी कुछ भी सार नहीं
मैं समझा कुछ तुम भी समझो
केवल पाना प्यार नहीं
प्यार तो है शृंगार रूह का
ये कोई व्यापार नहीं
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