पथ के साथी

Sunday, February 5, 2012

हाइकु मुक्तक



-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु’
1
मिलने की थी / चाहत पाली जब/ मिला बिछोड़ा ।
टूटा है मन / टुकड़ों-टुकड़ों में/ जितना जोड़ा ॥
रफ़ू करेंगे / मन की चादर को /उधड़ेगी ही ।
सपनों में ही / आकर मिल जाना/ जीवन थोड़ा ॥


2
पता जो पूछा/ तुम्हारा, भूल हुई /घर खो बैठे ।
झुकाते माथा/ खुशी से वही हम / दर खो बैठे ॥
सज़ा मिलेगी / तेरा नाम लिया तो / पता हमको
अपना माना/ जबसे , हम सारा /  डर  खो बैठे ।।

3
सँभले जब / पता चला हमको/क्यों टूटा मन ।
झूठे चेहरे/ पास खड़े थे जान / गया दर्प
हम अकेले/ नदी किनारे  संग / रोती लहरें ।
कितनी व्यथा !/ चीरती धारा , जाने/ सान्ध्य- गगन ।।

4
ढूँढ़ा हमने / सपनों तक में भी / खोज न पाए ।
तुम तो सदा / हमारे थे फिर क्यों / हुए पराये ।
जान तो लेते /हम किस हाल में / जीते -मरते
सब सन्देसे / खो गए गगन में/ हाथ न आए ॥
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(चित्र:गूगल से साभार)