रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
दुश्मनी तो निभा न सका कोई दुश्मन
जितने थे दोस्त , उनसे बेहतर निकले ।
मैं शहर में हूँ, तो डर लगता है बहुत
बियाबाँ में रहूँ जब, तो कुछ डर निकले ।
गुज़ारूँ रात कहीं, मैं सोचकर निकला
तलाशा था जिन्हें ,वे तो बेघर निकले ।
बरसों से रहे संग , कुछ भी ना सीखा
जब कीं बातें, बातों के ख़ंज़र निकले ।
तन्हा ही चले थे , हम जब दो ही क़दम
अकेले तुम ही थे ,जो हमसफ़र निकले ।
(21 जुलाई, 12]
बरसों से रहे संग , कुछ भी ना सीखा
ReplyDeleteजब कीं बातें, बातों के ख़ंज़र निकले ।
बेहद खुबसूरत भाव भरी रचना ....
सादर
"tanha hi chale---------humsafar nikle" bahut khub.puri kavita
Deleteaaj ki vastvikta darshati hai. Is yathhathvadi prashtuti ke liye
badhayi.
बहुत खूबसूरत...
ReplyDeleteतन्हा ही चले थे हम जब दो ही क़दम
ReplyDeleteअकेले तुम ही थे ,जो हमसफ़र निकले ।बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ बहुत अच्छी प्रस्तुति बधाई आपको
दुश्मनी तो निभा न सका कोई दुश्मन
ReplyDeleteजितने थे दोस्त , उनसे बेहतर निकले ।...आज के यथार्थ को अभिव्यक्त करती बहुत सशक्त रचना ....!!
गुज़ारूँ रात कहीं मैं सोचकर निकला
ReplyDeleteतलाशा था जिन्हें ,वे तो बेघर निकले ।
Bahut kuch kah gayi aapki likhi rachna gahre andaaj hain...besaharon se puch baitha koi ki kya sahara milega...
मैं शहर में हूँ तो डर लगता है बहुत
बियाबाँ में रहूँ जब तो कुछ डर निकले
Bahut kuch sochne par majbur karti hain ye panktiyan...bahut2 badhai..
बहुत सुंदर हिमांशु जी .....यह सटीक कहा आपने-
ReplyDelete"दुश्मनी तो निभा न सका कोई दुश्मन
जितने थे दोस्त , उनसे बेहतर निकले ।"
डॉ सरस्वती माथुर
बरसों से रहे संग , कुछ भी ना सीखा
Deleteजब कीं बातें, बातों के ख़ंज़र निकले ।.............
bahut sundar himanshu bil kul sahi kaha aapne , satik rachna
बरसों से रहे संग , कुछ भी ना सीखा
ReplyDeleteजब कीं बातें, बातों के ख़ंज़र निकले ।waah..
वाह...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत..
सादर
अनु
जीवन का यथार्थ दर्शाती उत्कृष्ट कविता .
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामना .
बहुत खूब..
ReplyDeleteबरसों से रहे संग , कुछ भी ना सीखा
ReplyDeleteजब कीं बातें, बातों के ख़ंज़र निकले ।
बहुत सुन्दर रचना...शुभकामनाएं
कृष्णा वर्मा
तन्हा ही चले थे हम जब दो ही क़दम
ReplyDeleteअकेले तुम ही थे ,जो हमसफ़र निकले ।
बहुत सुंदर ...भावपूर्ण !!
"बरसों से रहे संग , कुछ भी ना सीखा
ReplyDeleteजब कीं बातें, बातों के ख़ंज़र निकले ।
सच को बहुत सुंदरता से कहा आपने। मानव अपनी मूल प्रवृत्तियाँ कहाँ बदल पाता है?
तन्हा ही चले थे हम जब दो ही क़दम
अकेले तुम ही थे ,जो हमसफ़र निकले
वाह ! बहुत खूब ! अन्य पंक्तियाँ भी बहुत सुंदर हैं!
प्रेरित करते भाव...
ReplyDeleteमैं शहर में हूँ तो डर लगता है बहुत
बियाबाँ में रहूँ जब तो कुछ डर निकले ।
बहुत अच्छी रचना, शुभकामनाएँ.
गुज़ारूँ रात कहीं मैं सोचकर निकला
ReplyDeleteतलाशा था जिन्हें ,वे तो बेघर निकले ।
...
तन्हा ही चले थे हम जब दो ही क़दम
अकेले तुम ही थे ,जो हमसफ़र निकले
...
जीवन की हकीकत को बयाँ करती सशक्त रचना...हार्दिक बधाई!!
बरसों से रहे संग , कुछ भी ना सीखा
ReplyDeleteजब कीं बातें, बातों के ख़ंज़र निकले ।
sunder baat kahi hai aksr yahi sach hota hai
badhai
rachana
aik aik sher kamaal ke, Behad khoob..
ReplyDeleteदुश्मनी तो निभा न सका कोई दुश्मन
ReplyDeleteजितने थे दोस्त , उनसे बेहतर निकले ।
सच को बहुत सुन्दरता से लिखा है.
बरसों से रहे संग , कुछ भी ना सीखा
जब कीं बातें, बातों के ख़ंज़र निकले ।
बहुत सुंदर भाव हैं
बधाई,
सादर,
अमिता
मैं शहर में हूँ, तो डर लगता है बहुत
ReplyDeleteबियाबाँ में रहूँ जब, तो कुछ डर निकले ।
आत्म चिंतन ! सुन्दर प्रस्तुति | धन्यवाद |
मैं शहर में हूँ, तो डर लगता है बहुत
ReplyDeleteबियाबाँ में रहूँ जब, तो कुछ डर निकले
सच को सहज से ब्याँ करती हैं ये पंक्तियाँ !
हरदीप
दुश्मनी तो निभा न सका कोई दुश्मन
ReplyDeleteजितने थे दोस्त , उनसे बेहतर निकले ।
वाह...सच को बहुत सुंदरता से दर्शाती उत्कृष्ट कविता...|
भावपूर्ण पंक्तियाँ...|
बधाई...|
मैं शहर में हूँ तो डर लगता है बहुत
ReplyDeleteबियाबाँ में रहूँ जब तो कुछ डर निकले
बहुत गहरी पंक्तियाँ....
सशक्त रचना...हार्दिक बधाई!
मैं शहर में हूँ, तो डर लगता है बहुत
ReplyDeleteबियाबाँ में रहूँ जब, तो कुछ डर निकले
वहुत गहरे भाव हैं.
सशक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई!
सादर,
भावना
मैं शहर में हूँ, तो डर लगता है बहुत
ReplyDeleteबियाबाँ में रहूँ जब, तो कुछ डर निकले
Manju Mishra
हार्दिक बधाई बहुत सुंदर लिखा है ...!!
ReplyDeleteशुभकामनायें...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबरसों से रहे संग , कुछ भी ना सीखा
ReplyDeleteजब कीं बातें, बातों के ख़ंज़र निकले ।......वाह भाई साहब....बहुत खूब लिखा है.....आप तो सभी विधा पर इतना खूबसूरत लिखते हैं......अपनी बहन को भी आशीर्वाद दीजिये..:):).सादर
waah kya dam hai
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
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