पथ के साथी

Wednesday, October 12, 2011

आँसू की गठरिया(हाइकु)


-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
अमृत बाँट
आँसू की गठरिया
सिर पे ढोई
2
उगाते देख
उनको नागफनी
तुम थी रोई
3
वाणी के शर
पल-पल तुझको
रहे बींधते
4
भीष्म से ज़्यादा
घायल होकर तू
कभी न सोई
5
सबसे भारी
दु:ख तेरा बेधक
रहा रुलाता
6
बीते पहर
अभिशापों की नई
कथा सँजोई