पथ के साथी

Monday, August 29, 2011

गीली चादर (चोका)


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
दु;ख में ओढ़ी
थे रोए अकेले में,
सुख में छोड़ी
भटके  थे मेले में ।
नहीं समेटी
सिर सदा  लपेटी
अनुतापों की
भारी भरकम  ये
गीली चादर ।
मीरा ने ओढ़ी
था पिया हलाहल
हार न मानी,
ओढ़ कबीरा
लेकर  इकतारा
लगे थे गाने-
ढाई आखर प्रेम का
काटें बन्धन
किया मन चन्द
शुभ कर्मों से ,
है घट-घ वासी 
वो अविनाशी
रमा कण -कण में
कहीं न ढूँढ़ो
ढूँढो केवल उसे
सच्चे मन में
वो मिले न वन में
नहीं मिलता
 तीरथ के जल में,
पटी जीवन में ।