पथ के साथी

Sunday, April 10, 2011

बची है आस-


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
तेरी दुआएँ
महसूसती मेरी
रक्त -शिराएँ
2
ओस की बूँद -
बरौनियों की नोक
उलझे आँसू
3
तुम्हारा मन
व्याकुल क्रौंच जैसा
करे क्रन्दन
4
बची है आस-
कभी न कभी तुम
आओगे पास
5


गए हो दूर

यादों का रात-दिन
जलता तूर1


6
तुम्हारी भेंट
रख ली सँजोकर
प्राण हों जैसे
7
सपना टूटा
हाथ जो गहा था
हमसे छूटा
8
सपने बाँटे-
जितने थे गुलाबी,
बचे हैं काँटे
9
फूल हैं झरे
सपने सब मरे
साँझ हो गई
-0-


1 -एक पर्वत जिस पर दिव्य प्रकाश देखकर हज़रत मूसा मूर्च्छित हो गए थे  ।