पथ के साथी

Thursday, February 17, 2011

भटका मेघ



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
दु:ख हैं बड़े
गली-चौराहे पर
युगों से खड़े
2
पुरानी यादें-
सुधियों की पावस
भीगा है मन
3
नम हैं आँखें
बिछुड़ गया कोई
छूकर छाया
4
बेबस डोर
बाँधे  से नहीं बँधे
लापता छोर ।
5
भटका मेघ
धरती को तरसे
तभी बरसे





                                      
6
सिसकते मन को
उड़ा पखेरू



7
रड़कें नैन
छिन गई निंदिया
मन का चैन
8
याद तुम्हारी
छल-छल छलकी
बनके आँसू
9
झील उफ़नी
जब बिसरी यादें
घिरीं बरसीं
-0-