पथ के साथी

Tuesday, August 24, 2010

रक्षा -बंधन पर विशेष



कुछ पास कुछ दूर बहनें

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

दुनिया का ऊँचा प्यार बहनें
गरिमा- रूप  साकार बहनें
रेशमी धागों से  बँधा है
हैं सभी अटूट  तार बहनें ।
कुछ हैं पास ,कुछ दूर बहनें
सभी आँखों का नूर बहनें
हमको सभी की याद आती
जब याद आती ,है सताती ।
गहरे समन्दर ,पार हैं कुछ
वे बहुत कम ही इधर आती
आराम से हैं - वे बताती
 अपने सभी वे दुख छुपातीं ।
पर फोन पर आवाज़ सुनकर
मैं तो सभी कुछ जान जाता
गीले नयन मैं पोंछ उनके
मन ही मन  में यही मनाता-
सब दुख मुझे मिल जाएँ उनके
चेहरे खिल जाएँ उनके
न आँच  उनके पास आए
कोई पीर न उनको सताए ।
और  बहनें जो इस पार हैं
 वे दोनों घरों का प्यार हैं
बहुत काम सिर पर है  उनके
वे भी बहुत लाचार हैं ।
परदेस में बैठा है भाई
निहारता सूनी कलाई
घिरता नयनों में बचपन
फिर घुमड़ उठती है रुलाई ।
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9 comments:

  1. भाई हाथ बंधी
    बहनों की...
    सांस की डोरी
    चोट भाई को लगे
    बहना रो ली...
    जब कभी भी
    भाई होत उदास
    बहना की रुक जाती सांस
    ठंडी हवा का झोंका
    जब माइके से आए...
    तभी तो बहना
    चैन से जी पाए !!!!

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  2. बहुत अच्छी कविता।

    *** भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!

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  3. बहुत अच्छी कविता।
    :: हंसना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।

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  4. sir.rakhi ke is pawan parv par itni pyari kavita nishchit roop se har bhai- bahan ke man ko chho gai hogi.
    bahut hi achhi post.
    poonam

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  5. वाह! बहुत सुन्दर कविता! बेहतरीन प्रस्तुती!

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  6. एक भावपूर्ण कविता के लिए बधाई....

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  7. एक भावपूर्ण कविता के लिए बधाई....

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  8. बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर अभिव्यक्‍ति ! ऐसी पावन सोच वाले भाई पर किस बहन को नाज़ ना हो ! आपका साहित्य और आपका व्यक्तित्व अनुकरणीय है!

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