पथ के साथी

Thursday, August 26, 2010

शीतल छाँव



भाई बहन का प्यार संसार की अमूल्य निधि है ।इस निधि का प्रतिदान सम्भव नहीं ।उस अनुभूत प्रेम के लिए शब्द  ढूँढ़े नहीं मिलते । डॉ भावना कुँअर ने अपने भाव इस प्रकार व्यक्त किए
   सुलझा देता 
   उलझनों के तार
    भाई का प्यार।
    -डा भावना  
 इन शब्दों को आगे बढ़ाने का जो  एक छोटा-सा प्रयास किया गया, वह इस प्रकार है-                          
गंगा की धार
है बहनों का प्यार

बही बयार।


पावन  मन

जैसे नील गगन

नहीं है छोर ।


शीतल छाँव

ये जहाँ धरे पाँव
मेरी बहन ।                                                                                                                                 

8 comments:

  1. रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें! बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो दिल को छु गयी!

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  2. आपकी टिपण्णी और हौसला अफ़जाही के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! आपकी टिपण्णी मिलने से लिखने का उत्साह दुगना हो जाता है!

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  3. आदरणीय हिमाशु जी
    प्रणाम !
    एक धागा जाने किते रिश्ते बना देता है , बस निभाने वाला चाहिए ,
    सादर !

    --

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  4. पावन मन...
    जैसे नील गगन...
    क्या शब्द चुनें हैं आप ने रामेश्रर जी,
    पढ़कर मन को कितना सकून मिलता है वो यहाँ शब्दों में बाँधना कठिन है ।

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  6. Bhai bahan ke riste ko kitni khubsurti se aapne prastut kiya ha uska koi javab nahi..bahut2 badhai...

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  7. aage bhi badahana ha isko aajkal men..

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  8. अति सुन्दर....अभिव्यक्ति । समसामयिक जानकारी दे कर आपने बड़ा उपकार किया है।
    सद्भावी -डंडा लखनवी

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