पथ के साथी

Wednesday, August 18, 2010

कविताएँ

रेखा मैत्र रेखा मैत्र का जन्म बनारस (उ.प्र.) में हुआ। प्राथमिक शिक्षा बनारस में होने के बाद आपने सागर विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। तदनन्तर, मुम्बई विश्वविद्यालय से टीचर्स ट्रेनिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया। इसके अलावा आपने केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा में प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के विशेष कार्यक्रम में भाग लिया। कुछ समय तक मध्य प्रदेश में आयोजित अमरीकी पीस कोरके प्रशिक्षण कार्यक्रम में अमरीकी स्वयंसेवकों को आपने हिन्दी भाषा का प्रशिक्षण दिया। फिर ५-६ वर्षों तक राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के मुम्बई स्थित हिन्दी शिक्षण योजना के अन्तर्गत विभिन्न केन्दीय कार्यालयों/उपक्रमों/कम्पनियों के अधिकारियों और कर्मचारियों को हिन्दी भाषा का प्रशिक्षण दिया।
अमरीका में बसने के बाद आपने अमरीका स्थित गवर्नेस स्टेट यूनिवर्सिटीसे कुछ ट्रेनिंग कोर्स किए और कुछ समय तक वहाँ अध्ययन कार्य किया। फिर कुछ समय के लिए आप मलेशिया में रहीं और अमरीका में अंकुरित काव्य-लेखन यहाँ पल्लवित हुआ। आजकल आप फिर अमरीका में हैं और यहाँ भाषा के प्रचार-प्रसार से जुड़ी साहित्यिक संस्था उन्मेषके साथ आप सक्रिय रूप से जुड़ी हैं और काव्य लेखन में मशगूल हैं।


प्रकाशित कृतियाँ :
१ पलों की परछाइयाँ
२ मन की गली
३ उस पार
४ रिश्तों की पगडण्डियाँ
५ मुट्ठी भर धूप
६ बेशर्म के फूल
७ मोहब्बत के सिक्के
८ ढाई आखर
९ बेनाम रिश्ते
वेब - rekhamaitra.com
सम्पर्क :rekha.maitra@gmail.com
1-मुट्ठी भर धूप
मुट्ठी भर धूप की तलाश में
इस ठण्डे शहर में
मारी -मारी फिरी !
कहीं उसका निशाँ तक नहीं !
सब तरफ बर्फ और बर्फ !
सर्दी से ठिठुरती रही
तन से भी ,मन से भी !
तभी तुम थके -हारे
मेरे पास चले आये !
तुम्हारे कंधे पर मैंने
अपना हाथ रख दिया
तुमने बताया कि मेरे
हाथों में धूप सी उष्णता है
और ...........!
एक नन्हा सा सूरज
मेरे भीतर उग आया
तब से धूप की बाहर तलाश बंद !
-0-
2 -भेंट
प्यार के उपहार में
आँसू जो मिले मुझे
देखो उन्हें आँखों में
अंजन सा आँज लिया !
इनमे तो जीवन के
सारे रंग घुले हैं
जब तुम्हारे प्यार की
किरणे पड़ी इन पर
सारे इन्द्रधनुषी रंग
साथ झिलमिलाते हैं !
यूँ तो सहेजा है
बड़े जतन से इन्हें
फिर भी एक सोच सी
घिरती है आस -पास
कहीं न ढलक जाएँ
मेरे अनजाने में !
खाली एक बात मेरा
कहने का मन है
भेंट तुम्हें आँसू की
देनी थी मुझे जो
इनको सहेजने का
जतन तो सिखाना था ....!!!
3- खोज
वृक्ष की सशक्त शाखों से
बाहें दो याद आईं
फिर खयाल आया
प्यार पाना नहीं
देना है !
इतना सब जानते भी
कुछ -कुछ रह जाता है !
मैंने कहाँ जाना था
कि देने और पाने में
ये भी ज़रूरी है जानना
कि जो मैंने दिया है
क्या तुमने पाया है ?
उसी पूर्णता की तृप्ति
तुम्हारी आँखों में खोजती हूँ !
-0-

5 comments:

  1. रेखा जी का परिचय पाकर बहुत अच्छा लगा और उनका लेखन भी कमाल का है……………तीनों रचनायें बेहद शानदार्।

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  2. rekha ji pahali bar aapki rachnaayen padh rahi hun par mushkil ye hai ki tarrif kiski karun kyon ki teeno hi rachnaaye bahut hi bahut achhi lagi.vaise sach kahun to dusari rachna sabse achhi lagi.
    aadarniy sir ko bhi dhanywaad varna itni achhi post padhne se vanchit rah jaati.
    poonam

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  3. रेखा जी की पहली कविता बहुत गहरे भाव लिए है।

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  4. रेखा जी का लेखन कमाल का है....एक से बढ़कर एक....
    एक नन्हा सा सूरज

    मेरे भीतर उग आया....

    ऐसा सूरज सभी के भीतर है....जरूरत है उस से रौशनी लेने की ....

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