पथ के साथी

Sunday, October 18, 2009

शत-शत दीप जलाएँ



-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
अँधियारे के सीने पर हम
शत-शत दीप जलाएँ ;
दिल में दर्द बहुत है माना,
फिर भी कुछ तो गाएँ ।
दुख की नदी बहुत है लम्बी
बहुत ही छोटी नैया ,
छप-छप करती तिरती जाती
पार पहुँचती भैया !
दूर किनारा ,गहरी धारा
देख नहीं घबराएँ ।
आँसू और मुस्कान सभी का
इस जीवन में हिस्सा ;
फूल खिले जब तक साँसों के
तब तक का यह किस्सा ।
भरी सभा है नील गगन तक
गाकर इसे सुनाएँ ।
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