पथ के साथी

Monday, May 11, 2009

मणिमाला-3


मणिमाला-3
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1-पूजा
       पूजा आडम्बर नहीं मन को  शुद्ध करने की प्रक्रिया है  जो अपने आपको शुद्ध प्रमाणित करने  की आवश्यकता समझते हैं , वे तरह तरह के आडम्बरों में पड़ते हैं ।
2- लोभ-वृत्ति
       लोभ-वृत्ति मनुष्य के आत्मसम्मान को डँस लेती है।
3-विवेक
       उचित अनुचित का विवेक करना , मनुष्य के मनुष्य होने की पहचान है । सेठ साहूकार के पास गिरवी रखा धन प्राप्त हो सकता है; परन्तु गिरवी रखा विवेक नहीं ।
4-प्रकाश के उपासक
       अँधेरे में रहना , अँधेरे में रखना रोशनी के शत्रुओं की प्रवृत्ति रही है। प्रकाश के उपासक युगों-युगों से अँधेरे की हर पर्त उघाड़ने के लिए प्रयासरत रहे हैं ।
5-साधनों की पवित्रता
       कोई भी कार्य अपने साधनों से श्रेष्ठ माना जाता है। निकृष्ट साधनों से प्राप्त स्वर्ग भी त्याज्य है ।
6-कर्मशील
        मैं नरक में भी कई जन्मों तक रह सकता हूँ; यदि वहाँ काम से जी चुरानेवाले लोग न हों ।
7- अच्छी सलाह
       सर्प को अमृत रुचिकर नहीं लगता । दुष्ट को अच्छी सलाह कभी नहीं भाएगी ।
8-धर्म
       जो धर्म मनुष्य को मनुष्य नहीं समझता वह  मनुष्य से ऊपर नहीं है; राष्ट्र से ऊपर तो हो ही नहीं सकता ।
9-धर्म और कवच
              धर्म को कवच की आवश्यकता नहीं होती ।धर्म अपने आप में कवच है ।फ़तवों की बैसाखी पर आदमी ही ठीक से नहीं चल सकता ; धर्म कैसे चलेगा ।
[ 24 जनवरी, 2007]

मणिमाला-1


मणिमाला-1

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1-बड़ा काम
        जो किसी काम को छोटा समझकर उसे करना नहीं चाहता,वह  ज़िन्दगी में कभी बड़ा काम नहीं कर सकता ।
2-सदाचारी
       सदाचारी व्यक्ति अपने  कार्यों से बड़े बनते हैं। दुराचारी व्यक्ति दूसरों के काम में बाधाएँ उत्पन्न करके बड़प्पन बटोरना चाहते हैं ;लेकिन एक  न एक दिन उनकी कलई खुल जाती है ।
3-विश्वासघात
       मित्रों से विश्वासघात करनेवाला व्यक्ति खुद से भी विश्वासघात करता है ।
4-कपट-भावना
       धूर्त्त व्यक्ति अपनी मीठी-मीठी बातों का सहारा रोज़-रोज़ नहीं ले सकता ।   उसकी कपट-भावना  कभी न कभी प्रकट हो ही जाती है ।
5-शिक्षक
       जिस शिक्षक के मन में जाति-पाँति  और ऊँच-नीच का कूड़ा-कचरा भरा होता है, वह कभी विद्यार्थियों के हृदय को नहीं जीत सकता है ।
6-चापलूस
       चापलूस  व्यक्ति अपना स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर अजनबी जैसा व्यवहार करने लगता है ।
7-चुगलखोर
              चुगलखोर पर कभी विश्वास मत करो ।उसके लिए न कोई अपना है और न पराया ।उसकी जीभ को तो विष-वमन करने में ही आनन्द मिलता है ।
8-ईर्ष्या
      ईर्ष्या का प्रारम्भ दुर्बलता  से होता है । मानसिक रूप से पंगु व्यक्ति ईर्ष्या में रात दिन जलकर अपने विवेक की भी हत्या कर देते हैं ।
[10 -8-1986]

मणिमाला-2


मणिमाला-2
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1-अनुभव की आँच
   ठोस व्यक्तित्व का स्वामी अनुभव की आँच में तपकर और सुदृढ़ हो जाता है ; परन्तु फुसफुस व्यक्तित्व वाले लोग अनुभव की आँच नहीं झेल पाते ;इसीलिए पिंघलकर अस्तित्वहीन  जाते हैं ।
2-अनु्भव का मापदण्ड
   अनु्भव का मापदण्ड  कार्यक्षमता है , समय का अन्तराल नहीं ।सजग व्यक्ति एक साल में जितना सीख लेता है ; उलझे विचारों वाला व्यक्ति बीस साल में भी उतना नहीं सीख पाता है ।
3-पलायनवादी व्यक्ति
   पलायनवादी व्यक्ति न दूसरों की बात समझ सकता है और न दूसरों को अपनी बात समझा सकता है। वह कमज़ोर लोगों के सामने गुर्राता है तो दृढ़ लोगों के सामने घिघियाता है ।
4- आत्मप्रशंसा
    जो अपनी प्रशंसा स्वयं करता है, उसे दस-बीस लोग मूर्ख न भी समझें तो क्या फ़र्क पड़ता है ।
5-स्वार्थ
   स्वार्थ का रेगिस्तान सम्बन्धों की तरलता को सुखाकर ही दम लेता है ।
6-शोभा
   जूते पैरों की शोभा बढ़ा सकते हैं, सिर की नहीं  ।सिर की शोभा वही बढ़ा सकता है ;जो सबका   चहेता होता है ।
7-अनुशासन
   अनुशासन आन्तरिक चेतना है। भय के कारण दिखाया गया अनुशासन केवल ढोंग है। व्यवस्था का अंकुश हटते ही भय से अनुशासित लोग कामचोर बनने में पीछे नहीं रहते ।
8-विचार-शक्ति
   जो स्वयं किसी बात का निर्णय नहीं ले सकते  , उनकी विचार-शक्ति  की अकाल मृत्यु हो  जाती है और उन्हें हमेशा किसी दूसरे के इशारों पर ही नाचना पड़ता है ।
9- कंगाल
   दूसरे के मुँह का कौर छीनकर खानेवाला व्यक्ति भले ही करोड़पति बन जाए ; परन्तु मन से वह कंगाल ही रहता है ।
10-ईमानदारी
   यदि किसी की ईमानदारी को परखना है तो उसे बेईमानी  करने का अवसर दीजिए । अवसर मिलने पर भी जो ईमानदार बना रहे ;वही सच्चा ईमानदार है ।
[ 4 जनवरी, 1987]