पथ के साथी

Thursday, September 18, 2008

पनघट पर जाना

 

पनघट पर जाना

 

-सासू पनिया भरन कैसे जाऊँ,रसीले दोऊ नैना ।

-बहू ओढ़ो चटक चुनरिया,सर पै राखो गगरिया

बहू मेरी छोटी नणद लो साथ, रसीले दोऊ नैना ।

-मन्नै ओढ़ी चटक चुनरिया,सर ऊपर रखी गगरिया

हेरी मन्नै छोटी नणद ली साथ, रसीले दोऊ नैना ।

-तू बैज्जा पीपल छैंया,मैं भर लाऊँ जल गगरिया

ननदी घर नी जाकर बोल-

भाभी के पनघट पै दोस्त। रसीले दोऊ नैना ।

मेरी ननदल बड़ी हठीली,एक-एक की दो-दो लगावै

बरसात मैं करूँ तेरी सादी

गरमी मैं करूँ तेरा गौणा

भेजकर ना लूँ तेरा नाम , रसीले दोऊ नैना

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