पथ के साथी

Monday, October 15, 2007

और तपो और तपो

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

और तपो और तपो
और तपो और तपो
इसी तपन में देख
छुपी है शीतलता
सोना तपा रोया क्या
दमक उठा खोया क्या?

और चलो और चलो
और चलो और चलो
चाँद चला ,चलता गया
सूरज भी जलता गया
कट गया यूँ सफ़र
पूरी हो गई डगर ।

यह सड़क दुष्कर्म की
पहुँचती है स्वर्ग को
वह सड़क सुकर्म की
नरक द्वार ले चली
ऐसे स्वर्ग से मुझे
नरक ही भला लगे

बढ़े चलो बढ़े चलो
बढ़े चलो बढ़े चलो
सिर्फ़ सरल पंथ पर
बढ़े चलो बढ़े चलो
कुटिल मार्ग छोड़कर
बढ़े चलो बढ़े चलो
एक दिन आएगा
सच मुसकराएगा
सुकर्म की राह में
फूल ही बिछाएगा
धीरज धरो -
चले चलो चलो चलो

रचना-काल: 7जून 07