पथ के साथी

Wednesday, April 30, 2025

1459-दो कविताएँ

 

रश्मि विभा त्रिपाठी


1

अब 

सीने पर रख लिया है पत्थर 

मैंने

और जज्बात सीने के 

रख लिए हैं आँखों में 

ताकि जिसके लिए 

दिल जज्बाती हुआ था 

ज़िन्दगी में पहली बार

और पाया था मौत से बदतर दर्द 

फिर से न उठे हूक वैसी 

इस दिल में 

जिसने 

आँखों का कलेजा 

चीर दिया था 

कलेजा न होते हुए 

तब रोते हुए 

की थीं मिन्नतें

आँखों ने

दिल से

कि मेरी रोशनी तुम ले लो

और मुझे दे दो जज्बात 

ताकि तुम देख सको 

जज़्बात से खेलने वाले को

और मैं न रोऊँ 

तुम्हारे दर्द को महसूस कर

इसलिए आँखें रखेंगीं जज्बात 

फिर दिल न हो पाएगा 

उम्रभर मजरूह

दिल देखेगा अब 

जिस्मों में जिन्दा बच गई रूह।

—0—

2


मेरे मन की झील में

तुमने फेंका था एक कंकड़

अपने प्रेम का

जिससे तरंगित हुई थी मेरी आत्मा 

प्रेम में सर्वस्व अर्पण करने के 

नियम पर चलते- चलते 

मैं बन गई नदी,

 

और... 

ढोते- ढोते मुगालते

तुम 

बन गए पहाड़ 

मुझसे पीछे छूटकर 

तुम दरक गए

तुम प्रेम के पथिक थे नए

तुम्हें ढंग होता चलने का

प्रेम के साँचे में ढलने का

तो 

मैं जब नदी बनी थी

तुम बनते सागर

और तब

न केवल 

हम एक दूजे में समा जाते

बल्कि आधुनिक प्रेमियों के हाथ में

प्रेम की दुनिया तक पहुँचने का 

नक्शा थमा जाते।

—0—

Wednesday, April 23, 2025

1458

 दोहे

सुशीला शील



1.

धरती हमको पोसती, कर नाना उपकार।

शीतल जल, फल सँग हवा, सुंदरतम उपहार।।

2.

धरती को तू माँ समझ, देख हुआ क्या हाल।

चोटिल अंग-प्रत्यंग हैं, बेटा बन संभाल।।

3.

हरी-भरी रखना धरा, कहीं न जाए सूख।

डॉलर-रुपयों से नहीं, मिटे पेट की भूख।।

4.

धरती-सी रहना सदा, सहना दुख चुपचाप।

ठंडी-ठंडी छाँव दे, हरना जग का ताप।।

5.

गरजे पर बरसे नहीं, और बढ़ायी प्यास।

निर्मोही बादल हुए, तनिक न आए पास।।

6.

लहकी फसलें खेत में, शीतल बहे बयार ।

हलधर का पुलका जिया, पा धरती का प्यार।।

7.

पीली चूनर ओढ़कर, कर पूजा के फूल।

कहती संत वसुंधरा, चल मन हरि के कूल ।।

8.

हर मुश्किल छोटी लगे, पड़ें जहाँ भी पाँव।
मीत मिलें पग-पग तुझे, बस ख़ुशियों के गाँव।।

9.

न्यायपालिका ही नहीं, करे समय पर न्याय।

दुखियारे फिर अन्य क्या, बोलो करें उपाय।।

10.

 श्वेत-श्याम सब सामने, हों मौजूद प्रमाण।

 घोटें न्यायाधीश क्यों, वहाँ न्याय के प्राण।।              

11.

लोकतंत्र के ह्रास को, रोको करो उपाय।

भ्रष्टाचारी को सजा, जनता को दो न्याय।।

 

Sunday, March 30, 2025

1457

 

गुंजन अग्रवाल

 




माता शेराँवाली

द्वार पड़े तेरे

भर दो झोली खाली।

 

माँ वेग सहारा दो

भँवर फँसी कश्ती

अब मात किनारा दो

जागो मैया काली।

आस लगी तुमसे

भर दो झोली खाली।1

 

सुन लो माँ जगदम्बे

राह तके नैना

दर्शन दो माँ अम्बे।

हे अष्ट भुजा वाली

सिंह सवारिन माँ

भर दो झोली खाली।2

 

तुम भाग्य विधाता हो

करुणा करती माँ

सब सुख की दाता हो

तुम हो लाटा वाली।

भूल नही जाना 

भर दो झोली खाली।3

 

घेरे है अँधियारा 

मन मंदिर में आ

कर दो माँ उजियारा 

भक्तों की रखवाली

तुम मैया ज्वाला

भर दो झोली खाली।4

 

'अनहद' तेरी वाणी

ज्ञान, दया, दर्शन

तू ही वीणा पाणी 

जय माँ खप्परवाली

घर मेरे आओ 

भर दो झोली खाली।5

Saturday, March 15, 2025

1456-करूँ क्या होली है

 

करूँ क्या होली है/ शशि पाधा

 


सुनो रे वन के पंछी मोर

सखा! न आज मचाना शोर

चुराने आई तेरे रंग

करूँ क्याहोली है

 

रंगरेज की हुई मनाही

सब ढूँढे हाट-बाज़ार

इन्द्रधनु का दूर बसेरा

 करे नखरे लाख हजार  

छिड़ी है तितली से भी जंग

करूँ क्या होली है |

 

अम्बर बदरा रंग उढ़ेले

बूँदें बरसें सावन की

होरी चैती अधर सजें फिर

सुध-बुध खो दूँ तन-मन की

 ज़रा- सी चख ली मैंने भंग

  करूँ क्याहोली है |

 

चुनरी टाँकूँ मोर पाँखुरी

माथे बिंदिया चन्दन की

चन्द्रकला का हार पिरो लूँ

रुनझुन छेडूँ कंगन की  

 बजाऊँ जी भर ढोल मृदंग

 सुनो जीहोली है |

 

-0-

Thursday, March 13, 2025

1455

 

प्यार से अधिकार से/ स्वाति बरनवाल

 


तुम्हें बुला रहे कब से

प्यार से, अधिकार से!

 

तुम शहर के

मैं गाँव की

ये दिन फाग के

सज रहे रंग और राग से!

 

ख़्यालात रहे प्यार के

नशा छा होली से!

 

दही-बड़े उरद के

बर्फी सजी केसर से

स्वाद रहा इलायची का

असर रहा भाँग से!

 

घाघरा रहा रेशम का

चुन्नी टँकी मोतियों से!

 

चेहरा रहा लाल

मलती रही गुलाल

बंसी रही बाँस की

बजती रही साज से!

 

चलो सींचे जीवन सुंदर

प्यार से अधिकार से!

-0-

Wednesday, March 12, 2025

1454

 

कवित्त

1-गुंजन अग्रवाल अनहद


1

श्याम रंग चहूँ ओर, भीग गयो पोर- पोर,

अंग- अंग राधिका के, दामिनी मचल उठी।

प्रेम की पिपासा गाज भूल ग लोक-लाज

अधरों पे राधिका के रागिनी मचल उठी।

मन में मलंग उठे, हिय में तरंग उठे,

छेड़ गयो चितचोर कामिनी मचल उठी।

सारा रंग, देह सारी, मार गयो पिचकारी,

अब के फगुनवा में ग्वालिनी मचल उठी।

2

खेलनको आये होरी, करें श्याम बरजोरी

भंग की तरंग संग, करत धमाल हैं।

बलखाती चलें गोरी, हाथ लिये हैं कमोरी।

संग में किशोरी आईं, फेंकत गुलाल हैं।

मार दई पिचकारी, भीगी देह सुकुमारी,

लाज से लजाय गई , लाल हुए गाल हैं।

अंग- अंग में उमंग , मन में उठी तरंग,

श्याम रँग रंगी मन, बसे नंदलाल हैं।

3

बरसाने की मैं छोरी नाजुक कलाई मोरी

करेगो जो बरजोरी हल्ला मैं मचाय दूँ।

नैनन सों वार कर बतियाँहजार कर,

मुसकाय उकसाय झट से लजाय दूँ।

छेड़ेगो जो अब मोय, रंग में डुबोय तोय,

 साँची-साँची बोलती हूँ गोकुल पठाय दूँ।

हाथन में हाथ डार, रगड़े जो गाल लाल,

करैगो जो जोरदारी, रंग में डुबाय दूँ।

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गुंजन अग्रवाल अनहद’, फरीदाबाद 

सम्पर्क. 9911770367

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आई होली वर्ष पच्चीस की

दिनेश चन्द्र पाण्डेय


1.

केसर कली की पिचकारी

पात-पात की देह सँवारी

रवि- किरणों से रंग चुराकर

प्योली ने अपनी छटा बिखेरी

होली आई अपने रंग में

फिजा में घुले नशीले गीत

समय से पहले खिले बुराँ

वादियाँ हुईं युवा व  सुरभित

गुलाल, अबीर, हरा, पीला

सब निकले बाहर बाग-वनों से

खुशरंग चुराकर फूलों से

खुद पर छिड़के इन्सानों नें

2.

जितने रंग थे दुनिया भर में

सब व्हाट्सएप पर छाए हैं.

भले ही घर में तंगहाल हो

फोन पे छटा बिखरा है.

हँसते चेहरे फेसबुक पे

फूल कली मुसका हैं

सूने पड़े गलियों के पैसेज

भटके फिरें होली के मैसेज

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Saturday, March 8, 2025

1453-महिला दिवस

मुक्तक

डॉ. सुरंगमा यादव

 


1.

मिले तूफान राहों में, हमें पर रोक ना पाए 

कभी इरादों की स्याही, समन्दर टोक ना पाए

जो जुनूँ का क दरिया हमारे दिल में बहता है

लाख सूरज तपे लेकिन, से वह सोख ना पाए॥

2.

कोई मौसम, कोई रस्ता, हमें बस चलते जाना है  

दिखाए व़क्त ग़र तेवर, नहीं इक आँसू बहाना है

पसारे भुजाएँ कब रास्ते ये हम सबको बुलाते हैं

अगर पाना है मंज़िल तो क़दम ख़ुद तुमको बढ़ाना है॥

3.

सजे दीपक के संग ज्योति त दीपक सुहाता है

हो जब अक्षत-संग रोली तभी टीका भी भाता है।

है नारी प्यार की मूरत, बिन उसके कहाँ घर है

बिन मूरत के मंदिर भी कहाँ मंदिर कहाता है॥

4.

है नारी- मन तपोवन-सा, प्रेम-करुणा लुटाता है 

जो करता मान नारी का, वही सम्मान पाता है।

बिछाकर राह में काँटे क्यों परखते बल तुम उसका -

है वही काली, वहीं लक्ष्मी, वही बुद्धि प्रदाता है॥

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