पथ के साथी

Tuesday, October 24, 2017

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उमंगें खो गई हैं -कृष्णा वर्मा


अतीत में डूबा
आज सुबह से टूट-टूट पड़ता मन
पनियाई हैं पलकों की कोरें 
तुम्हारे जाने ने
मायने ही बदल दिए
राखी और भाईदूज के
उमंगें खो गई हैं गहरे कहीं अँधेरों में
ना तुम रहे ना जननी
ना रहीं वह प्यार पगी
चाहत में पसरी बाहें
और ना ही इंतज़ार में
टँगी स्थिर- सी पुतलियाँ
कैसी ठंडी हो गई हैं अब वह
अपनापे की ऊष्मा से सनी
घर की कोसी दीवारें
खिड़कियों से झाँकती खुशियाँ
दहलीज़ की चहक
वह मिलन के पल
वे स्नेह -प्रेम की बौछारें
वे आसीसों की फुहारें
बार-बार प्रेम पूर्ण मेरे
मन पसंद व्यंजन खिलाना
रह-रह तड़पा जाती हैं वह प्यार की मिठास
उस पर उपहार में क़ीमती तोहफ़ा
इतना नहीं भैया-- कहते ही
तुम झट से कहते क्यों नहीं-- हक है तुम्हारा
और कैसे माँ तुम भी साथ ही कहने लगतीं थीं
बेटियाँ तो बाम्हनी होती हैं बिटिया
तुम्हें देने से ही तो बरकत है इस घर में
कैसे भूलूँ भैया वह नेह और दुआओं से सिंचा
काँधे पर तुम्हारा स्पर्श
गले लगा मिला माँ से वह
अव्यक्त अनूठा प्यार
आज आँखों में चलते वह दृश्य
कितनी दुख और उदासी की
तरेड़ें छोड़ गए हैं मेरे बेकाबू मन पर।

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13 comments:

  1. मार्मिक।

    कैसी ठंडी हो गई हैं अब वह
    अपनापे की ऊष्मा से सनी
    घर की कोसी दीवारें

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  2. मन विचलित कर गई ।
    मार्मिक भावपूर्ण

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  3. मन विचलित कर गई ।
    मार्मिक भावपूर्ण

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  4. bahut hi sundar bhavpurn abhvyakti .krishna ji badhai .

    pushpa mehra

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  5. ह्रदयस्पर्शी सृजन के लिए हार्दिक बधाई कृष्णा जी

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  6. मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आ० भाई काम्बोज जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  7. कृष्णा जी भाई और माँ के खोने के दुःख में रची बहुत मार्मिक पंक्तियाँ हैं मन को छु गयीं | आपके दुःख में शामिल मन |

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  8. "...कितनी दुख और उदासी की तरेड़े छोड़ गये हैं मेरे बेकाबू मन पर ।" कृष्णा जी सचमें अपनों के बिछुड़ जाने की अनुभूति मन को विचलित कर जाती है ।यह तरेड़े कभी भरी नहीं जा सकती । बहुत मार्मिक कविता हैं ।अपने मन की पीड़ा को कविता का रूप देकर हम सब से अपना दुख साँझा करके आप को अवश्य कुछ सकून मिला होगा । मन को सांत्वना दें ।

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  9. मर्मस्पर्शी ! मन ,आत्मा को भिगो गईं पंक्तियाँ ...नमन !!

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  10. आदरणीया /आदरणीय, अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है आपको यह अवगत कराते हुए कि सोमवार ०६ नवंबर २०१७ को हम बालकवियों की रचनायें "पांच लिंकों का आनन्द" में लिंक कर रहें हैं। जिन्हें आपके स्नेह,प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन की विशेष आवश्यकता है। अतः आप सभी गणमान्य पाठक व रचनाकारों का हृदय से स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया इन उभरते हुए बालकवियों के लिए बहुमूल्य होगी। .............. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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  11. ह्रदयस्पर्शी सृजन !!
    मन भिगो गईं पंक्तियाँ....

    कैसे भूलूँ भैया वह नेह और दुआओं से सिंचा
    काँधे पर तुम्हारा स्पर्श
    गले लगा मिला माँ से वह
    अव्यक्त अनूठा प्यार

    हार्दिक बधाई कृष्णा जी!!

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  12. बहुत मार्मिक है आपकी रचना...| मेरी बधाई स्वीकारें...|

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