पथ के साथी

Monday, September 12, 2016

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शृंगार है हिन्दी
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

खुसरो के हृदय का उदगार है हिन्दी ।
कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी ।।
मीरा के मन की पीर बनकर गूँजती घर-घर ।
सूर के सागर- सा विस्तार है हिन्दी ।।
जन-जन के मानस में, बस गई जो गहरे तक ।
तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिन्दी ।।
दादू और रैदास ने गाया है झूमकर ।
छू गई है मन के सभी तार है हिन्दी ।।
'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया ।
टंकारा के दयानन्द की टंकार है हिन्दी ।।
गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया ।
आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी ।।
'कामायनी' का 'उर्वशी का रूप है इसमें ।
'आँसू' की करुण, सहज जलधार है हिन्दी ।।
प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।
निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी।।
पीड़ित की पीर घुलकर यह 'गोदान' बन गई ।
भारत का है गौरव, शृंगार है हिन्दी ।।
'मधुशाला' की मधुरता है इसमें घुली हुई ।
दिनकर की द्वापर* में हुंकार है हिन्दी ।।
भारत को समझना है तो जानिए इसको ।
दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी ।।
सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही ।
देश का स्वाभिमान है, आधार है हिन्दी ।।
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(*द्वापर युग को केन्द्र में रखकर लिखे दो काव्य-कुरुक्षेत्र और रश्मिरथी से दिनकर जी की विशिष्ट पहचान बनी। 'परशुराम की प्रतीक्षा' में परशुराम को भी प्रतीकात्मक रूप में लिया ।]

6 comments:

  1. खुसरों जी से लेकर दिनकर जी तक की साधना का हमें ये जो प्रसाद दिया है आपनें भैया जी ... बहुत मीठा है और असरदार भी |इसमें हिंदी की गौरव गाथा ....अनुपम !आप इसी तरह लिखते रहें ... सादर .नमन है आपकी लेखनी को ! !

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  2. हिंदी की गौरव गाथा.... हिंदी की ही तरह अतुल्य। आपकी लेखनी को नमन।

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  3. बेहतरीन सृजन...आ.रामेश्वर सर

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  4. आदरणीय भैया जी बहुत सुंदर रचना ..हिन्दी के प्रति आपकी श्रद्धा को सादर नमन....हर पँक्ति भावपूर्ण और शानदार ..हृदय को छूती है ...आपकी लेखनी को सादर नमन .....बहुत शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय

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  5. भाई की ये कविता हिन्दी पखवाड़े के दौरान मेरे भाषण का हिस्सा बनकर सबका मन मोह लेती है

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